________________
te
नान्न-जिन ग्नबन में श्रीमद, पहने हैं कि मैं मंग्रा का फल नहीं मांगना कि मची मेवा फल अवश्य पिंगा। श्रीन चोरीपी के१० मन प्रान नहीं है । अन्तिम नीन ता अप्राय है। चोवीपी एवं बाहु जिन नयन पर मां श्रीमदन त्रयं प्रियंचन लिया है। भावों को स्पष्ट कर दिया है। श्री निवंग म्नयन दाल में अभिनय की गंगा जॉगम बहाई है। गोतम स्वामी का "विग्हा विद्याप" ती बड़ा ही. काणांपादक है।
सिद्धाचल-नबन में यहां मुनियन किय प्रकार पिढना प्रान की इपका नो चिन मा अंकित कर दिया है। श्रामाफी उदबोधन करते हुए श्राप कहते हैं कि:
" आनम माय मां ही चतन, आनम माय मा।। परमाय ग्मनां है चनन, काल अनन्न गयो । डा चेतन ॥२॥ गणादिक मुनिन चवन, पदना-नंग अन्यो। नौगति मां, गमन करना, निज आनमने दमा । हो चंद्रन MRI शानाद्रिक गुण ग धरीन, फर्म को मंग रमा। भानम अनुमत्र च्यान घना, शिवगमणी सु रमा । होचतन l पग्मानम ध्यान करना, अब थिनि में न ममा।
"वयनन्द्र" पग्मानम पाहिय, स्यामी फागन नमो ॥ होतन men माधु की पांच भावनाश्री में श्राध्याम का या श्रापक पुट दिया गया है। वह देवन प्रोग्याइनमें प्रथम में "शुन "का, मग में "न" का मरम्य बनलाकर नीमरी और चौथी में गात्र और पाय आमा को बंद की मार्मिक शादी में बाधिन किया गया है। मुनियों की आत्रनाओं में क्या ग्रामि हानी है। प्रारंभ में ही रहा है:
" शुन-मायना मन थिर कंग, मन मननी छेद। द्रप मापना काया दम, याम बेद उमेद्र ॥ मुख्य पात्र निर्मा , निज युना एक मात्र ।
नृप मायना आत्मगुण, मिछ, मायना धाय ॥" नप-भावना में नपस्त्री मुनि श्री भूरि भूरि प्रशंषा की गई है
अयियण नप गुण पाद्ग, नप नन्नछांज महकमे । विषय विकार. मारेन, मन गंजे हो भने अय-मर्म ॥
जांगे अग्रेन्द्रिय जप नका, उपसाणा ही क्रम मुटणहार.॥ निण माधु नप नन्दपार थी, मूल्यों के हो नि, माह गयंत्र । निण माधुना धान, निन्य बैंड डॉनम्न पद अमिंद्र ॥ घन्य ने धनगृह, ननी, नन लहना करी छद्र । नियंग अनग्राद पन्द्र, नपचारी हो तो अभिग्रह हा