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प्रमु अकर्ता हैं पर उनकी सेवा से सेवक पूर्ण-सिद्धि प्राप्त कर लेता है। प्रभु अपना धन किसीको कुछ भी नहीं देने पर उनके आश्रित-साधक उनके निमित्त कारण से अपनी अक्षय रिद्धिको प्राप्त कर लेता है । "प्रभु की पूजा वास्तवमें अपनी ही पूजा करनी है" इस वाक्य में कविन "मानों उसके हृदय में उसका अध्यात्म-तत्त्व सजीव बोल उठा हे " व्यक्तकर कमाल कर दिया है। इस स्तवन की प्रथम गाथामें कहा है कि प्रभु में पूज्य-भाव स्वयं प्रगट हुआ है। वे दूसरों द्वारा की गई पूजाकी कमी वांछा नहीं करते अपितु साधक अपनी कार्य-सिद्धि के लिए ही उनका पूजन करता है । प्रभु को इसकी तनिक भी इच्छा व प्रसन्नता नहीं । प्रभु विमलनाथके स्तवनमें भी प्रभुको सम्बोधित करते हुए श्रीमद् देवचन्द्रजी कहते हैं:
" ताहरा शुद्ध-स्वभाव ने जो आदरे धरी घटुमान ।
तेहने तेहि जे नीपजे ए कोई अद्भुत तान " अनन्त-जिन स्तवन में प्रभु-मूर्तिको अपूर्व समता से भव्य-जीयों पर होनेवाले प्रभावों को व्यक्त किया गया है । सर्वत्र एक ही तम्ब भिन्न भिन्न शब्दोंमें परिस्फुट हुआ है।
धर्मनाथ-प्रभु के स्तवन में प्रभु के साथ अपनी जातीय एकता व्यक्त करते हुए श्रीमदने उनके समान ही अपने को समझने की अभिलाषा प्रगट की है । स्वामी ने तो पर भाव परिहार कर अपना आत्मिक आनन्द पा लिया और मैं पर-भावकी संगति व आसक्ति में फंसा हुआ पड़ा हूँ लेकिन फिर भी स्फटिक के समान एक ही सत्ता की दृष्टिसे-निर्मल हैं। परोपाधि मेरी नहीं है अतः परमास्माकी भक्ति के रंगमें अपने को रंगकर अपनी आमाके शुद्ध-स्वरूप का ग्राहक बन, परभाव का त्याग करना ठीक हैं । मेरा आम-स्वरूप मेरे द्वारा ही संपन्न होगा। मेरा सब आम-ऐधर्य, शौर्य, वीर्य, "प्रभु को ही मेरे मन-मन्दिर में ध्यान करते हुए "-मैं ही प्रगट कर सकूँगा।
शान्ति नाथ के स्तवन में देव-निर्मित समवशरण में प्रभु देशना देते हैं। उसका वर्णन है। और भगवान कुंथुनाथ के स्तवन में श्रीमद ने निम्नप्रकार अभिलापा व्यक्त की है । यथाः
" अहित स्वभाव जो मापणो रे, रुचि रांग्य समेत ।
प्रभु सम्मुख चंदन फरी रे, मांगीश आरम-हेतोरे । " अरनाथ-प्रभु के स्तवन में कार्य-सिदि के कारगीको आमा पर घटाने एप उपादान कारग आमा और निमित्त कारण प्रभु को पतलाते हुए कवि के मका-दय की उर्मि दात हो उठी है। आप कहते हैं:
" मोटा ने उत्संग यंठा ने सी चिन्ता
तिम प्रभुचरण प्रसाद, सेयक धया निचिन्ता ॥ " मल्लिनाश-स्तवन में ६ कारकों को आमा पर ही पटाकर स्नलाया है । प्रमु मगही आगन्याला