SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद देवचन्द्रजी के समय साध्वाचार में कुछ शिथिलता आ गई थी । अन्नमें आपने त्रियोंद्वार कर उसका परिहार किया। मं० १७७७ में ही अहमदाबाद पधारे। "नागोरीसराय" (हाल 'नागोरीशाळा') में आपका टहरना हुआ व्याप्न्यान में अध्यात्मनान श्री अविल धाग प्रवाहित होने लगी । श्रोतागणों में धार्मिक आइलाइ बढन लगा था भगवनी-जैसे मूत्रा का गमीर रहस्योद्घाटन होने लगा । सं० १४७१. का चातुर्मास ज्वमान किया आपश्री के उपदेश में गहुंजय तीथ की व्यवस्था व जीगोंदार के निमिन पदी की स्थापना हुई। मुरतादि में चौमासा समान करते हुए पं० १७८८ में "गजनगर" में बीमामा चिया । मिनी आषाढ शुभा २ की आपके गुरु दीपचन्दीका स्वर्गवास हो गया । तपागच्छीय विचविजयादि को आपने शानों का अध्ययन गया। अहमदाबाद का शायनमूत्र इस समय स्ननचन्दनी भण्डारी हाथ में था। 'आणंदरामजी' उनके प्रधान क्रायक्रना थे और वे भी श्रीमद के अनन्य मक थे। उनमें आपकी प्रशंसा सुनकर भण्डागनी भी आप अंदा म छाम उठाने लगे। आपश्रीन भण्डारीजी के अनुरोध से महामारी का उपन्य मन्त्राम्नाय में निवारण किया था। घोलका के श्रेष्टी जयचन्दनं पुरूपानम योगी को गुरुश्री के पास लांक प्रनिवाधिन कराया। मं. १७९५ में पालीताना व मं०१७१६-१७ का नवानगर में चातुर्मास किया। पग्धा राणापात्र मा ठाकुर आपका मक हो गया। सं० १८०१ में भावनगर में चातुर्मास का पाठीनानाथ अगि उपन्य उपशान्त किया। मं० १८०५ में श्रीबट्टी के श्रावको धर्म-छाम दिया। राजनगर, पाटीनाना, छींबडी, धांगवा, नवानगर चूड़ा आदि में आपने जिनालयाँ व जिनपित्रों की प्रतिष्ठा की अनेक भूमि-यूना-विगयी व्यक्तियों ने जिनकि में मन लगाया। सं० १८०४-20 में शुटुंजय नार्थका संघ निकला। उसमें आप भी सम्मिलित थे । कचग फीका संघयात्रा प्रायद है। मं० १८१२. में आपका चातुर्माप्त गजनगर में हुआ और वहां आपका बगवास हो गया। आपक शिष्य यनपत्री, विनयचन्दनी व शिष्य बनुनी गयचन्दजी, समाचन्द्र, त्रियकचन्द्रादि विनयवान एवं मुगुणानुगगी व क्रियापार थे । अन्तिम समय पर उत्तराध्ययन, दश्वचालिकाहि त्राका श्रवण करते हुए सं० १८१२ में मात्र बदि. १५ एक प्रहर गरी त्र्यतीत होन पर, आपन बहिण ख्यिा । श्रीपद यात्रिनयनी के "ज्ञानमार प्रन्थ पर संशन में आपने सुन्दर टीका बनाई है। प्राशन में क्रमप्रन्य सम्बन्धी ३-४ प्रन्या का निमांग किया है। हिन्दी में 'द्रव्यप्रकाश' पूर्ववती. ग्चना मानमापा गवस्थानी की गयध में अपग्बनी गुनगन में अधिक रहने में गुजराती भाषा' में चित्र है। चौबीपी के आदि ग्नबना में अपन तव बान के साथ साथ मां का अम्बुण्ड प्रबाह बहायां है। "अध्यात्म-गीता" अश्याम नानको सुन्दर रचना है।"AZ प्रवचन" माना श्री सम्झाय में आपने मुनि के प्रत्येक प्रनि का रहस्योदघाटन किया है "पंच भावना में मत्व एवम् एकत्र
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy