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समाजने पण अत्युपयोगी छे. आकृतिओ विश्वने कल्याणनो साचो राह चधि छ, जीवनने ऊर्ध्वगामी बनाववा माटेनी सुचारू प्रक्रिया रजू करे छे. खरखर, वर्तमान युगनी प्रना मांट आ अणमोल मेटछे. सहु कोई माटे ए मुवाच्य अने मुपच खोराक छ. ग. जोतां मारपूर्वक कहेवार्नु मन थाय छ के लोकसमूहमां आ ग्रन्थनी धुमां वधु प्रतिष्टा थवी जोईए, अन आने सर्वमान्य अने सर्वग्राह्य करवा माटे 'गीता'नो जेम आना उपर मिन्न मिन्न पद्धति अने विविध दृष्टिकोणथी, सुंदर शैली अने लोकमोग्य भाषामा अनुवादो, विवेचनो ने व्याख्याओ पण थवा नोईए. अन एना प्रचारने व्यापक बनावत्रामा सहुए भागीदार बनवू जोईए. अणु-हाइडोलन अने कांवाल्ट बोम्बना आर आवीन ऊमेला विश्व माटे अध्यात्मवादनां प्रचण्ड कळोंने सत्वर नाप्रत करवा त्र जोईप, अंने ए माटे आध्यात्मिक सिद्धान्तोनो छूट थी वुमा वधु प्रचार थनो जीईए. आवा सफल प्रयत्नोहाग ज मानवजातनु अज्ञान घटाडी शकाश, आत्मवादने दवावी रहेला भौतिकवादनां परिवळोन नाथी शकाश अन फलतः मानवचेतनानु तेजोमय ऊर्चीकरण साधी शकाशे.
अहीयां प्रसंगोपात्त एक आंतरवेदना जणावं के आजना विद्वानो अने शिक्षित वर्ग परदेशी विद्वानानां नाम अने कामने जेटलं जाण छे, तटलं भूमीना महापुरुपोनां नाम अने कामन नाणतो नथी; आ एक कमनसीव ने शरमननक घटना छ. और ! खुद गुनरावना न विद्वानो पोताना न घरांगणे प्रक्रटेली आवी विज्ञ विभूतिने कामथी तो पछी, पण नामी पण व्यार न जाणे, त्यार आन्तरप्रान्तीय विद्वानोने तो आपणे शुं कही शक्र!
धीनी महादश्वनी वात ए के के आपणा विद्वानो वीजा धमों अंग साई ज्ञान धरावता हाय छ, व्यार पोनाना आंगणे न रहन्छा, गुनगती प्रनाना उकर्षमा सर्वोत्तम अन अनोड फाळो आपनार जैनधर्म अंगे के तेमना साधुपुरुषो अंगेनुं ज्ञान मेळववामां खूब खूब पठात रह्या छ. और, तओन घणीवार तो ओरमाया पुत्र नेवु न वळण नोवाय छ. हनारो वर्षी जीवना जैनधर्मना ज्ञानना अमावे गुजगतना शिक्षण विभागमांचालता गुजरानी आदिमापानां पुस्तकोमा, अन अन्य साहित्यमांपण, ज्या ज्या भगवान महावीर के जैनधर्म त्रिय टग्यु छे त्यांच्या दम विनानु, ठीटर लाव्यु छ अने कटलीक वार तो धर्मना मर्मनो समनणना अभाव खोटां विधानो करीन अन्याय पण कयों छ; नाण-अनाणे खोटीहकीकतो रजू थई गई है. आ वर्धानां कारणोनी समीक्षानुं आ स्थान नथी, परंतु विद्वानोंने मारी मानरोध प्रार्थना छ के, तो ऊडा ऊतर अने लखवा पहलां नैन विद्वानोनो संपर्क साधी, हकीकतोनी चोफसाई करी पठी लखे, लाल्या पठी पण मुयोग्य विद्वानने बताबी पछी मुद्रित करे, तो अन्याय थवा नहीं पामे. आशा राखीए के हवेथी तओ पोतानी ज्ञानसाधनामां जैन विद्वानो, कवियों ने ग्रन्थकारोंने जरूर स्थान आपशे.
उपाध्यायनी महारान ए परमात्मा महावीरदेवना एक साचा अने शिस्तपालक सैनिक हता,