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________________ २७ - in 1 -. वैराग्यकल्पलता अने वैराग्यरति जेवी वैराग्यमय रचनाओ द्वारा तेमना हैयामां शान्तरसनो अने करुणानो गंगा-यमुना जेवो केवो स्रोत वहेतो हशे ते जाणी शकाय है. अष्टसहस्री विवरण जुओ, अने तमने उपाध्यायजीनी सोळे कलाए खोली ऊंनी विद्वतप्रतिभानां तेजोमय दर्शन थशे ने मुखमांथी धन्य । अति धन्य ! ना उद्गारो सरी पडशे. दार्शनिक शिरोमगि एक श्वेताम्बर साधुए दिगम्बरीय कृति तेमज जैनेतर कृति उपर चलावेली प्रौद्ध फलम, ए ओधानी हार्दिक विशालता, उदात्त विचारो, सामाना शस्त्र द्वारा न सामाने जवाब आपवानी अने परकीय ग्रन्थोद्वारा स्वसिद्धान्तोनुं समर्थन करवानी तेमनी लाक्षणिक कुशळतानुं अजोड इशांत पूर्व पाडे छे. तेओश्री विरचित के पल्लवित अध्यात्म अने योग विषयक ग्रन्थो जोईए छोए त्यारे, तेओ एक सिद्ध योगी तरीके आपणी समक्ष खडा थाय छे. जैनेतर अन्य पातंजलयोगदर्शन उपर टीका रनी जैन योगप्रक्रिया समत्व वताववा साये तेमांनी अपूर्णताभो दूर करवान तेमनुं साहस जोईए छोए त्यारे तेओनीनी सर्वागी प्रत्युत्पन मेधाने नतमस्तके भावांजलि अपाई जाय छ । वेदान्त ग्रन्थो उपर टीका करवानू खेडेलु साहस, ए. एमणे दार्शनिक क्षेत्रे साधेली ज्ञानसिद्धिनो एक सबळ पुरावो है. एमर्नु जीवन-कवन जोता ढूंकामां एक वस्तु फलित थाय छे के माध्यामिक प्रवणता एन तेमनो अन्तश्चरप्राण हतो अने सद्धर्मतत्त्वप्रचार ए.ज तेमनो बहिधर प्राण हृता. अहीं मारे सगर्व कहे जोईए के, मारी अल्प जाण गुजब, कोई दिगम्बर के अनतर विधाने जैन येताम्बर दार्शनिक अन्य उपर टीका-विवरण करवा शक्ति के उदारता बनायी होय, ते नागवानां नी. ज्यार श्वेताम्बरोए केरलीये जैनेतर कृतिभो उपर अने दिगम्बर पति उपर पण विविध टोकामो रची पोतानी विशार दृष्टि अने उदारतानुं ज्वलंत उदाहरण पूर्व पाउ\ है या उदार ऋगने संकुचित कोण छे, तेनो निर्णय फरवार्नु वानको उपर छोडं हूं. बीजी एक विशिता पनीरयों नदी के आज सुधी साहित्यक्षेत्र संस्थत-प्राप्त प्रन्योना गुजराती अनुवादा गय-१८ द्वारा गया है, पग पर गुजराती भापानी पचरचनानी अर्थ जटिलताने समजावा संस्कृत भाषामा टीका नयों पर गुजराती भाषाना परमय क्षेत्र एक अपूर्व ने नोचपात्र घटना . उपायजीना 'न्यगुण पाय रास' अन्य माटे आई बन्यु के. अरे. गुजराती निभाने समजवा गुजगता अनुगदी पन नखान. उपाध्यायजी भगवाननी तिमीमा पाटनीक निगे माग गो. rist अहोगा सर्वोपयोगी एति तरी ये प्रतिमानो उन्नत की काय : एक मारने की आयामसार. भारतिभो संस्कारसाEिRE न्य स्थान परावे देवी है. सभी अंग उगंदर
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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