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________________ सौथी वधु स्वहस्तप्रतिओ आन मुधीमां कोई कोई विशिष्ट व्यक्तिना हस्ताक्षरवाळी प्रतिओ मळवा पामी छे. व्यारे एक भव्य भारतीय त्रिमुनिना हस्ताक्षरो आपणन मळे त्यार आपणन खरखर, आनन्द ने गौरवनो अनुभव थया वगर न रहे. तांधीनी स्व-हस्ताक्षरी प्रतिओ आपणने उपराउपरी मलबा पामी छे, तेनु प्रमाण नोता आटली बची स्वहस्ताक्षरी प्रतिओ जैन संघना आत्रा अन्य कोई पण महर्षिनी हशे के कैम ! ते सवाल श्राय छे. आथी जैन श्रीसंघ तो खरेखर बडमागीन है. आज तआश्रीनी स्वहस्ताक्षरी त्रीस प्रतो मली छ. ए आ जैन संघ माट न नहिं पण गुजरात अने राष्ट्र माटेनी एक गौरवपूर्ण घटना है. एक तपस्वी त्यागमूर्तिना हस्ताक्षरो ए काई एक व्यक्ति के समाजनुं नहीं पण समग्र प्रजार्नु राष्ट्रीय धन छे. अन ए रीत न पर्नु जतन थर्बु लोईए. मुनिवरश्री पुण्यविजयनीनो फाळो ___ अहींयां मार सहर्ष कवू नोईए के उपाध्यायांनी स्वहस्ताक्षरी प्रतिओं के अन्य साहित्यने मंळवबार्नु महृदपुण्य श्रेष्ठ संशोधक, विद्वान मित्र मुनिवर श्री पुण्यविजयजी महाराजन फाळे वाय छ. अन हजुता आपणन घणु घणुं नवं आपवाना न छ. तेआधीन उपाध्यायजी उपर अथाग गुणानुराग है, तथी तओ बरसोयी उपाध्यायजीनी प्रन्थसामग्री आदि अंगे भक्ति अने खंतमयों पुरुषार्थ करता आव्या . ते उपरांत उपाध्यायनी रचित ग्रन्थोना संशोधन अने प्रकाशनमा पूज्यपाद प्रौढप्रतापी सुरिसम्राट् आचार्य श्री विनयनेमिसूरीश्वरजी महाराज साहव तथा तमना परिवारनो फाळो सहुथी वधु प्रशंसा ने धन्यवाद मागी ले तेवा छे. उपाध्यायजीना साहित्य अंगे कईक कोई पण महापुरुषनी साहित्यकृनिओ ए तमनुं नीवन, तैमनी प्रतिमा, तेमना नीवनना उदार तस्वी, बहुश्रुतता अन तत्कालीन परिस्थितिनुं माप कादवानी आदर्श अनसचोट पाराशीशीओ गणाय छ. ज्ञानमूर्ति उपाध्यायजीनो चार चार भाषाओमां रचायेको विपुल अने समृद्ध ग्रन्थराशि जाईए छीए त्यार तो नवसर्जननी रंगभूमि उपर एक सिद्धहस्त नटराजनी अदायी न्याय, व्याकरण, साहित्य, अलंकार, नय, प्रमाण, तर्क, आचार, अध्यात्म, तत्वज्ञान अने योगशास्त्रस्वरूप अंग-मंगोहारा बाणे चित्तहारी नृत्य की रह्या होय तेg दृश्य खडे करे है. आम उपाध्यायजी जुदै जुद प्रसंग जूनवे रुप देखा द छे. एक वखते नव्यन्यायनी कलम द्वाग कठोर-कर्कशताथी व्याप्त हृदय जोवा मले है, ज्यार बीजी वखन काव्यप्रकाश, अलंकारचूडामणि आदि साहित्यालंकारिक कृतिओनी वृत्तिओ द्वारा गृढ अने सुकुमारताथी परिण्टापित हैयानां पण दर्शन थाय छेत्यार कवि भवभूतिनी 'वत्रादपि कटोराणि मृदूनी कुसुमादपि'-ए उक्तिनुं स्मरण थई आवे छे.
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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