________________
वस्तुस्थिति थी जुड़ी के
शिला
"3
चाले है. एस कर्मी साल दर्शक मोटो भाग २७१५न लेलो आयो है, व्या आन केम चन्युंशे ! एना कारणमां प्रधान कारण तो पादुकानो है. एना उपर "१७१५ नो साथ अने नागसर सुदि ११ vt. प्रथम प्रथम ऋण अपाई थी की तेज ग्रत्युसा-निथिने काना- तिथि जाहर की दीवी हो ! नेपछी तो टेट सहु उल्लेख करता गया हो ! परिणाने आपणा मीडिया पंचांगामां पण का खोटी तिथिनो उन्हें यह रह्यो है. परंतु के साल नयी तो जन्मनी के नथी रखर्गगमननी ! नांटे चाली आदी काहने सम्बर सुचारी की नईए प्रस्तुत १७१५नो टटे के दो अमदावादनां पादुकानां प्रतिष्ठान है.
आर्थी एक चान निःशेकपणे निश्चिन्त यई नाथ के के लेको १७१९ ना मागझर बुद्धि ११ पांववासी या हवा. पण ते क्यार ! ते निर्णय करवानी रहे है.
सुत्री गाएका
" सुन्नत्रयात्रि चोमा रा. पाठक नगर डोई रे fasi guest अणुसरी, अणसणिकरि पातिक बोई रे, "
आ पद्य उपाध्यायज्ञ इमोईमां नानुयातुं स्पष्ट जगावे छे. पण स्वर्गगमन चातुमोसम थुं के ले पछी यतेि संपूर्ण मौन है, जो था कृतिनी साईए नां शंका कमी करी है, तेथी देने के बचन आप के वणनो विषय के एट ए बावने बाजू पर नए, पण उपाध्यायनी कुन्दना चतुर्मास के गुजराती पद्यनिओ बनावी है; ए दृटियां वचनानी साइ चावी है, देनुं अन्तिम पद्म का प्रमाणे -
रनि चोमा रही है, वाचक अस करि जोडी, बड़० युग-युग-नि-विधु चत्पर है, दियो मंगल कोडी.
[ प्रक्रि• हेतुगर्भ ० ]
युग-युग-मुनि-विधु बन्सरह रे, श्री जसविनय उवज्झाय, टोडo सूरत चोमा रही है, कीवी ए चुपसाय. टी० ॥६॥
[ श्रार अंग ० ] परती ने ओम वृति यानांसाठी दावी है. अब 'युग युग'
ने चार इन संख्या वाचन है; तो कहीं विद्वानो युगयी चारनी के संख्या यवान आह प्रस्तुत निर्णय करा नांटे अकाट्य साधन तो कोई व
लो बघु संगत है, टई अन्तःपीन
शब्द बपरायों है, हवे सब प है के, का शब्द कई संख्या लेकी ? बैंक चार ! या नाटे केला घरा है; ज्या हुं थी लुडो पहुं हुं नथी. परंतु अहीं युगनी अर्थ चार करवा कर