________________
गाळा बाद १६९९ नी अवधान कर्यानी साल नौधे छे अने त्यार पठी काशीगमन सूनवे छे, पण ते क्यारे !-ते विपे मौन सेवे हे. आगळ चालतां काशी अने आग्रामां [४+३] सात वर्ष रखानो उल्लेख करे छे. पण ते माटे चोकस सालनिर्देश नथी करता; गुजरातमा पुनरागमन क्यारे थयु ! वगैरे हकीकतो उपर पण संपूर्ण अन्धारपट छे.
१६८८ नी दीक्षा जणावीने सीधो १६९९ नो, ने त्यांथी सीधा उपाध्यायपदार्पणनो १७१८ नो, ने छेक्टमा डभोई चातुर्मास कर्यानो १७४३ नो, आम चार संवतोनो ए उल्लेख करे छे. आ सिवाय वीजी कोई तवारीख के साल नोची नथी..
सुजसवेलीकार, उपाध्यायजी श्रीविनयविजयजीना गुरुनाता ज होय तो, तेओ तेमना समयना कवि होया उता, तेओए प्रस्तुत कृतिमा महत्त्वनी हकीकतोनी केम कशी नोंध न लीधी:-ते घटना खरेखर ! एक कोयडो बनी नाय छे.
___ अने उपाध्यायजी तो, खरेखर ! त्यागमय अने निस्पृह जीवन जीवता जैन महर्गिओनी परंपराने ज अनुसर्या छे. एटले स्वजीवननी नोध अंगे तेमणे तो केवळ उपेक्षा ज सेवी छे. आयुष्य केटलं ?
मुजसवेलीनी संवतोनी सचाईने उपलब्ध अन्यान्य उल्लेखोए पडकारी है. मुजसवेलीना आधारे उपाध्यायजीनी आवरदा ६० थी ७० वर्षे अंदाजीशकाय, व्यारे अन्य साधनो ९० थी१०० वरसन आयुष्य नकी करी आपे छे. सुजसवेलीकारे दीक्षा १६८८ मां जणावी छे तेओनीन बालदीक्षित गणीने, दीक्षानी वय आठेक वर्षनी जो कल्पीप तो जन्म संवत १६८० भासपास अंदाजी शकाय.
हवे वि. सं. १६६३मां खुद उपाध्यायजीना गुरुजी श्रीनयविजयजीप उपाध्यायजी गाटे चीतरेला मेरुपर्वतनी आकृतियाळा पटमा उपाध्यायजीन, प. वखते 'गणि' तरीके उज्या छे, त्यारे तेमनी दीक्षा कयार गणवी? जन्म कचारे कल्पवोवळी तर्कभाषा, दशार्णभद्रसम्झाय वगैरेनी प्रतिओने अन्ते मळेला उल्लेखो जोता तेमोश्रीनो जन्गसमय साहजिक रीते पाठक जाय, एटले के १६४० थी १६५० वचनो कल्पी शकाय. स्वर्गगमन तो १७४५ पहेलो ज थयु छ ए. हकीकत निर्विवाद है. एथी तेओनीने शतायुः मानवागां कोई बाध जणातो नथी.
१६९९ मां राजनगरमां अवधान-धारणाशक्तिना प्रयोगो का पीज फाशी गाना वात सुजसवेलीकार करे हे, पण तेथी ते तुरत ज गया ले के थे-चार बरसो बाद ! ते सूनवता नथी. आना अचूक निर्णय माटे अन्य साधनी गवेपयां जोईए. कालधर्मनी वियि कई ?
उपाण्यायजीनु भयुष्य भने स्वर्गगमननी संवत संग विहानोमा पनासक पसी मतभेद