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________________ श्रीयुत भोगीलाल सांडेसरा अने वकील श्रीनागकुमार आलेखेलां संस्मरणो पण आप्यां है. आम कुल ४६० पानांना लखाणथी प्रस्तुत ग्रन्थ समृद्ध बन्यो छे. सबनी ऊजवणी पूर्व विद्वानो उपर एक परिपत्र मोकलवामां आवेलो अने तेमा 'लेखो वगैरे छापी प्रसिद्ध करवामां आवशे' एवं वचन आपवामां आवेलं, ते आजे पूर्ण थतां आनंद थाय छे. एक ज स्थले उपाध्यायजी. अंगेनी वधुमां-वधु जीवनसामग्री होय तो भविष्यमा तेमना विपे वधु अभ्यास करवानी के लखवानी कामना करनारने ते सहायभूत थइ पडे, ए टिने लक्ष्यमा राखी 'सुजसवेलीमास' तथा अगाउ प्रगट थयेला, कोई कोई लेखोने सुधारी वधारीने दाखल कर्या में, उपाध्यायजीन आधारभूत जीवन चरित्र हजू मुधी मळी आन्युं नथी. जे कांड थोडी घणी विगतो मळे छे ते सुजसवेलीभासमांथी. बाकी रही दंतकथाओ. आम पूरती सामग्रीना अभावे तेमना जीवन-कवन साहित्यनी व्यापक अने ऊंडा अभ्यास पूर्वक समीक्षा करनार व्यक्तिओ गणीगांठी छे. आ महापुरुपनी प्रगल्भ विद्वत्ता अने तेमोश्रीना महान व्यक्तित्वनी छाप तेमना प्रन्योना साचा अभ्यासको उपर पडे छे, तेनो परिचय विशाल जनता अने अन्य विद्वद्वर्गने थाय ए इष्ट छे. आ अन्य ते उद्देशने सफल करी भविष्यना अभ्यासकोने अभ्यासमा प्रवेशवा प्रस्तावना रूप थई पडशे एवी आशा राखी वधु पडती नथी. लेखोने ग्रन्थस्थ करवानो निर्णय देवायो त्यारे कशी न मुडी न हती अने रेतीमान नाव हंकारवामां आवेलं. सभाग्ये पाठळथी डभोईना श्रीविजयदेवसर जैन संघे, सारी एवी मदद फरी, तेम उतां तैनाथी पांच छ गुणो खर्च थयो छे आर्थिक संकोचना करणे ग्रन्धन बने तेटलो सादो वनाच्या सिवाय टूटको न हतो. सुशोभनोना सौंदर्य करता सादाईनी मनोरमता पण फदिक दिल हलावनारी होय छे. आवा सादा ग्रन्थनी आंतरसमृद्धि ओली नथी, एवी वानकोने खानी आपीए डीए. प्रेस वगैरनी पागवार मुस्केलीओने लीध मुद्रण कामे त्रण त्रण प्रेस जोया. उतां कह जीईग. के छल्ले वसंत प्रिन्टींग प्रेस लि. ना संचालक भाई श्रीजयन्तिलाट दलाले अमारं आ कार्य पोतान मानीने उत्साहपूर्वक करो आप्युं छे. अने प्रेसना मुन्य कार्यकर धीशान्तिलाल शाह अने तेमना सहकार्यकरोए पण पूर्ण सहकार आप्यो ई. श्रीयशोविजय सारम्बतसवनी ऊजवणी तथा पू. उपाध्यायजीना पवित्र हम्नागने लगता लोको तथा अन्यायरण वगैरे छापी आपयानुं काम अमदावाद दीपक प्रिटगना मालिक नटुमाग फरी मायुं छे. गभर्नु आवरण इमोईना उत्साह नित्रकार धरमगिस्तान गिलान : यार फर्यु हे. पहित श्रीमंगलार प्रेमनंद शाईफ संशोधन वगैरे कार्यमा लागनीक महाय करा. चाहन्डिग श्रीफफोरभाई याभाईए फरी कायं. मा सोनोगे धनःकरणकभार मानोर जीए.
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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