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॥ श्रीवाचकवरभ्यो नमः ॥ aaraate निवेदन
जैनधर्मना महान प्रमात्रक, भारतीय विसूले, कुकारा, गुजराना ज्योतिर्बर पू. उपाध्यायली मगत्रानना जीवन अनेने स्पर्शना खोथी समृद 'न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजय स्मृतिग्रन्थ ' ग्रगट खां आगे अमने अत्यन्त आनंद था के ब आनंद तो सूर्या थाय के के आवो प्रयत्न अभूतपूर्व भयो है. नेवी ओना नाम साये संक्रळापळी, नवी व्यपाएकी 'श्रीयशोभारती प्रकाशन समिति' तरफ बहार पडे है. ए रात समिति प्रकाशननी दिशामां पहले इन भरी रही के.
भगवान जिनेन्द्रदेवना शासनना विकल्याणकर सिद्वान्तो अने तेनी पवित्र संस्कृतिना संवाइको, रको प्रचारको आचायों उपाध्यायों ने श्रमण साबुओं है. जेओ विना मानवीओने सत्य अने ज्ञाननो दिव्य सन्देश संमळावे . मानवी ने सांभळाने पोनानुं यथायोग्य कल्याण सांवे के.
पू. श्रीयशोविजयजी, उपाध्याय पदे विराजमान हता. तेथी श्री उपाध्याय श्रीयशोविजयजी अथवा ए पदनुं नामान्नर 'वाचक' होवाथी वाचक श्रीयशोविजयी तरीके ख्यान थया है. तेजश्रीनी सुनन ज्ञानोपासना, चारित्र साधना हती. तेओए सिद्धान्तोना रक्षण खादर महान् फाटो आपने रेवर आपणा उपर अगव्य उपकारो वर्षा है. कात्री एक महान विभूतिना महान कार्यने आ ग्रन्थहाग नत्र ने नानीशी श्रद्धांजलि अपंग खान अमोर विन प्रवास क्यों है. अनारा या प्रयास श्रत्य समाज के जनता जरूर बघावी देश, एम अनाई अन्तःकरण कहे है.
या प्रत्यने मुख्य
विभागमां विमक करवामां आयो थे. पहेलामां श्रीउपाध्यायजीनुं जीवन तथा वन ने श्रीजामां जुदा जुदा विषयो उपरना निर्वयोनो समावेश थाय छे. आ उपरांत "श्रीयशोविजयजीनी सृर्तिनी प्रतिष्ठा ने श्रीयशोविजय सारस्वतसत्रनो हेवाल " ए शीर्षक नीचे मुंबई- मंडे जैनसंयमांत्री नवीन कार्यक्रम अने 'जैन' पत्रमां प्रगट यो अहवाल उन ने छापामा आयो सारा संदेशाओ व्यापी मुनिवर्य श्रीयोविजयजी महाराज उपर का पत्रांमांथी उपयोगी नवी पण संघानां आव के अन्तमां डॉ.