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________________ ૩ न्यायाचार्यपद मेळवावा पहेलां जे सो ग्रन्थोनी रचना करी ते क्यारे करी ? आ वधो विचार करतां १६९९ मां काशी जवं असंगत ज ठरे छे. ४ स्वर्गवासने लगतुं अंतिम चोमामुं उपाध्यायजीए डभोईमां कयुं, परंतु पनुं वर्ष भासकारे १७४३ आप्युं छे ए विचारणीय छे. कारण के उपाध्यायश्रीए प्रतिक्रमणहेतुगर्भस्वाध्यायमां 'सुरति चोमासु रही रे, वाचक जस करि जोडी, वड़० । " युग युग मुनि विधु वत्सरइ रे, देयो मंगल कोडी वह० ||६|| " ए प्रमाणे १७४४नुं चातुर्मास सुरतमा कर्यानुं जणान्युं छे. अगियारअंगनी सज्झायोन पण “युग युग मुनि विधु वच्छरइ रे, श्री जसविजय उचज्ञाय, टोड० । मुरत चोमासु रहो रे, कीधोए सुपसाय, टो० ॥६॥ " आ रीते सं० १७४४ नुं चातुर्मास मुरतमां रह्यानुं जणान्युं छे. केटला कनुं मानवुं छे के ' युग ' शब्दथी वे संख्या लई ' १७२२ वर्ष ' मानवुं, पण 'युग' शब्दधी मुख्य नार संख्या लेवाय छे. ए दशामां अहीं वे संख्या लेवी ए एकाएक घटमान करवुं कटिन हे. ए निर्णय एक शंते थइ शके के -जो आ वे स्वाध्यायनी के वेमांथी कोई एकनी सं. १७४४ पहेली लखेली प्रति मळी आवे एटले आ निर्णय करवा माटे आपणे भंडारांनी तपास करवी रही. • आ रीते विचार करतां एकंदर भासकारनी संवतने लगती वातनो कोई मेळ मळतो नथी. एटले उपाध्यायजीना जीवनचरित्र अंगेना आ प्रश्नो विद्वानोए पुनः गंभीर रोते चर्चबाना ज रहे है. अंतिम निवेदन अंतमां सोनावती निवेदन छे के - ज्ञानतेजोमूर्ति महोपाध्यायश्रीए जे घरा उपर पोताना पुनीत जीवननी समाप्ति करी समाधि लोधी हती, एज धरामां अवतार लेनार एज नामधारी मुनिवर श्रीयशोविजयजी - यशोविजयसारस्वतसत्र " ऊजवचा पूर्वक आपणने एक अपूर्व स्मृतिगंध अर्पण करे छे, तेनो आपणे सौ धन्यवाद प्रदानपूर्वक वे हाथ पसारीने स्वीकार करीए छोए. ते उपाध्यायजी महाराजश्रीना जीवनने स्पर्शतो बोजी विशिष्ट कृति आपणने आपा माटे प्रयत्नशील है. ए आपणा सौ माटे सविशेष आनंदनी बात है, सोने जाणीने आनंद थरी के श्रीयशोविजयजी अने तेमना गुरु-प्रगुरुश्रीनी जीवंत प्रेरणाथी वो एक कृति माटे प्रो० भाईश्री हीरालाल रसिकलाल कापडीया-जेओ एक लुयोग्य विद्वान् लेखक हे प्रयत्न करी गया है. आ उपरांत उपाध्यायजी महाराजनी अपूर्व रचनाओंने प्रकाशित करवा माटे पण तेओ उद्यमशील छे, ए ते करतां य विशेष आनंदनी बात है. आपणे सो आशा गली के भावी सामग्री आपणने सत्वर प्राप्त थाय । - मुनि पुण्यविजय
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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