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परिच्छेदः १५
बंजरा देवा ए विशेषण जूड पाडवाथी तथा अरिहंतादिक वर्णवाद तुल्यपणाथी समग्रदृष्टिदेवोनोज वर्णवाद संवे बे, केमके जीवित पर्यंत तप ब्रह्मचर्य - वांतरे स्विकृत करचा पण विराध्या नही तेमज पूर्वोक्त विशेषण यभिप्रायथी महोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृतहुंडीना तवनमां तथा अर्थ कर्त्ता पण समग्दृष्टि देवतानोज वर्णवाद लखेडे, तथा विपक्ककहिए नदयमां याव्यां तप ब्रह्मचर्य तेना हेतु देवायुष्कादि कर्म जेमने,
टीकाकारना पर्यायार्थथी साधारण देवोनो वर्णवाद पण संवे केम के समष्टि मिथ्यादृष्टि बेन देवाने पूर्वकृत तप ब्रह्मचर्यादि हेतु प्रायुष्कादि कर्म उदये याव्यां बे ते जोगवे बे. ए अभिप्रायथी प्राये मिथ्यादृष्टि देवोनो पण वर्णवाद करवो संजवे, केमके श्री जीवाभिगमादि सूत्र वृत्त्यादिकमां सम्यग्दृष्टि व्यतिरिक्त देवोना पूर्व सुकृत वर्णवाद पण बोल्या बे.
ते पाठः ॥ तबहवेवरसयणासाविसिधसंगसं विया पं० समाज सोखाइए गरूय बूरणवणीततूलफासा मतया सवरयणामयाश्रच्चाजावपडिरूवा तच बहवेवाण मंतरादेवादेवीन्य प्रासयंतिसयंति चिठंतिणिसीयंतितुयहं तिरमंतिजलतिकीलतिमोहतिपुरापोराला सुचिणाांसु परिकताएं सुना एकल्ला एक मा कम्मा एकल्ला फलवि