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चतुर्थस्तुति निर्णय शंका-दारः
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न करे ते वर्णवाद एम बे जे, अरिहंते प्ररूप्यो ते धर्म केवो के वस्तु एटले पदार्थ प्रकाशवा सूर्य बे, अने अतिशय रत्ननो सागर वे सर्व जगजीवनो बंधु, वे प्रकारनो पण जिनधर्म ते जयवंतो वर्त्तो ॥ २॥ श्राचार्यनो वर्णवाद बोलनारो सुजनवोधिपणानुं कर्म करे ते वर्णवाद एम बे ते प्राचार्यने नमो, जावे करने वली तेमने ज नमो, ते प्राचार्य केवा बे के बीजाना कोई उपकारनी चाह्यना विना पण परना हित करवामां रक्तबे, नव्याने जे ज्ञान च्यापेबे एम कहे ते वर्णवाद ॥ ३ ॥ तथा संघनो वर्णवाद बोलनारो जीव सुलनबोधि कर्म नपार्जन करे; ते वर्णवाद एम, ए संघने पूज्यां कां एवो कोइ रह्यो नथी जे पूज्याविना रह्यो होय; ए संघ केवोबे के त्रण जवनमां पूजवा योग्य बे, ने ए संघथी बीजो वो गुणी कोइ नथी जेमां ते संघथी अधिक गुण होय, एम बोलवं ते संघनो वर्णवाद बे ॥ ४ ॥ तथा देवनो व
वाद बोलनारो सुजन बोधिपानुं कर्म करे ते वर्णवाद एमके, देवोनो ग्रहो आचार तथा स्वनाव केवो बे! के विषयोना विषयमां मुझ्या बे तो पण जिनराजना चैत्यने विषे बरा देवांगनानुनी साधे पण हास्यादिक नथी करता एम देवनो वर्णवाद बोले ॥ ५ ॥ ए पांच प्रकारे सुलन बोधिपरणानुं कर्म करे ॥ ए पाठमां विवक्कत