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________________ ६६७ परिच्छेदः १५ हनीकर्म अने शातावेदनीनो उदय ने ते कर्मना उदयथी मैथुनमां आसक्त : अने अविरति कर्मना उदयथी विरति पण तेमने नथी, अने देवनवनो स्वजाव ए ने तेथी ते आंखो टमटमावता नथी, अने अणुत्तरादिक देव ने ते कृतकृत्य थया तेथी तेमने चेष्टा नथी, एटने कांइपण कार्य तेमने करवु रह्यं नथी माटे चेष्टा शं करे? अने तीर्थनी प्रनावना नथी करता ते काल दोष , पण अन्यत्रजग्याए करे पण ने एम जाणवं, पण अवर्णवाद न बोलवो. ए पाचमुं उन्नबोधिपगु॥५॥ए पांच कारणे जीव उर्जनबोधिपणानुं कर्म उत्पन्न करे अने एज पांच कारण विपरीत होय तो सुलनबोधिपणुं होय ते कहे जे; पांच तेकाणे पांच प्रकारे जीव सलनबोधिपणानुं कर्म उत्पन्न करे ते कहे, अरिहंतनो वर्णवाद बोलतो थको सुलनबोधिपणानुं कर्म नपार्जन करे ते अरिहंतनो वर्णवाद ते एम, राग, द्वेष, मोह जेनए जीत्या एवा केवली सर्वज्ञ, इंडे करी पूजा ते जेमनी एटले देवें पूजित एवा, अने वली केवा के अत्यंत सत्यवचन बोलनारा, जेमनु केवारे पण जूतुं वचन होय नहीं एवा, वली मोद गति जनारा एवा,जिन जे अरिहंत ते जयवंता प्रवों,एम कहे ते अरिहंतनो वर्णवाद ॥१॥ तथा अरिहंते प्ररूप्या धर्मनो वर्णवाद बोलनारो सुलनबोधिपणानुं कर्म उत्प
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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