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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः चोथो ॥॥ तथा विपक्कं के संपूर्ण नली रीते अतिशये करीने पर्यंतने प्राप्त थयो तप अने ब्रह्मचर्य नवांतरमा जेमना अथवा विपक्क एटले उदय आव्यां बे तप अने ब्रह्मचर्य तेना कारणथी देवताना आयुषादिक कर्म जेमने एवा देव तेमनो अवर्णवाद बोलतो उर्लनबोधीपपार्नु कर्म करे, देवोनो अवर्णवाद ते एम ले के केवारे ए पण दीवामां आवता नथी, तेथी देवता बेज नही अथवा तो ते पण विटपुरुषनी पेठे अर्थात् अत्यंत कामी पुरुषनी पेरे काम सेववामां जेमनुं मन आसक्त रहे, एटले जम नीच माणस काममां रक्त रहे तेम ते रहे तो ते श्या कामना ले? तथा ते देव अविरति बे, कापण त्याग करता नथी, तेमनी यांखो मीचाती नथी, ते माटे कांइपण चेष्ठाए करीने रहित होवाथी मरण थएना पुरुष सरखा बे; वली प्रवचनना कार्यमां पण उपयोग नथी करता, एटले जैनशासनना कोई काममां पण आ वता नथी, एवा देवतानए करीने गुं! इत्यादिक देवोना अवर्णवाद द्वेषथी बोले ते उर्सनबोधि कर्म उपार्जन करे, ते मूरख इहां उत्तर जाणतो नथी जे देव , तेमनो करेलो अनुग्रह अने उपघात इत्यादि देखवाथी, एटले जक्तीथी लोकोनुं नलु करे, अने रूठा हानि करे. ए देख वाथी देव अने कामनोगमां अासक्त ने तेतो मो.
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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