SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५७ परिजेदः १५ ए पाठनो नावार्थ सुगम बे, पण तात्पर्य ए जे के कारणे पण समग्दृष्टि प्रशस्त बलि ये पण मिथ्यादृष्टियोनी पेठे अप्रशस्त बाल न दे, माटे कारणे देवदेव प्रमुखने प्रशस्त बलि देवो संनवे, पण विना कारणे न संनवे; पड़ी तो निरापेक्ष पणे सिक्षांतवेत्ता कहे ते सत्य.॥ पूर्वपदः ॥ जेकर प्रतिदिन देवदेवता और श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करनेसें मिथ्यात्व किंवा पाप लगता हे, तो फेर पादही चातुर्मासी अरु सांवत्सरी रूप महा. पर्वो के दिनोमें तथा प्रवज्याविधि अरु प्रतिष्ठा विधिमें पूर्वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग करनेसे नी महा मिथ्यात्व और महापाप तुमकों लगना चाहिये? ___ उत्तर पदः ॥ पूर्वधर तथा पूर्वाचार्यना ग्रंथोमां पदी चातुर्मासी सांवत्सरी रूपमहापर्वोना दिवसोमांतथा प्र. बज्या प्रतिष्ठादि विधिमां पूर्वोक्त देवतायोना कायोत्सर्ग करवा कह्या बे, पण प्रतिदिन करवा कह्या नथी ते सर्वे वार्ता शंका समाधान पूर्वक अनेक शास्त्रोनी सादीथी अमो उपर लखी प्राव्या लिए, तेमज ते पूर्वधरादिकनी थाझा प्रमाणे करिए जीए, तेथी महामिथ्यात्व तथा महापाप अमने तो लागतुं नथी, पण तमनेज लागे जे, केमके पूर्वधर पूर्वाचार्योनी अाझा तो पूर्वोक्त कारण विना प्रतिदिननी नथी; ने तमे तो आशा जंग करीने
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy