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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः ६५७ प्रतिक्रमणना अंतविनागमा क्षेत्र देवीनो कायोत्सर्ग स्तुति कहेवी, ते अभिप्रायथी टीकाकारे स्तुति प्रतिपादन करी संनवे बे; अने जो एम संनवमान न करिए तो पूर्वाचार्य तथा उपाध्यायजी प्रमुखनां वचन विरोध पामे कारण के पूर्वाचार्य तथा उपाध्यायजी प्रमुखे तो अवग्रह याचन निमित्तेज देत्रदेवी प्रमुखनो कायोत्सर्ग कह्यो पण स्तुति न कही, अने प्रवचन सारोक्षारादि वृत्तिकारे विघ्नविनाश निमित्ते क्षेत्र देवीनो कायोत्सर्ग अने स्तुति कहि, एमपरस्पर गीतार्थानां वचन विरोध पामे पण गीतार्थीनां वचन प्राये परस्पर विरोध होय नही, माटे साधुने तो विहारादि कारणे तथा परिक चनमासी संवबरीना अंतनागमा देवदेवी प्रमुखनो कायोत्सर्ग अवग्रह याचन निमित्ते संनवे,अने श्रावकने प्रतिष्ठादि विशिष्ट कारणे विघ्नविनाशने अर्थे त्रिदेवीनो कायोत्सर्ग स्तुति सहित करवो संनवे; केमके कारणे चथुर्विध संघने पण देवादिकने प्रशस्त बलि देवो आवश्यकचूर्णीअध्य०२ मां कहथु दे.॥
तेपात पसबदेवबलेयअप्पसबदेवबलेयपसनदेवबबेडब्बजियपूसमित्तपमुहेणसंघेणदेवयाएबलिनिमित्तंकान स्सग्गोकतो अप्पसनदेवबने बगलमहिसपुरिसमादिहिंचमियातीणंरुद्ददेवयाणंजागाकीरंति ॥