SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः ६५९ प्रतिदिन पूर्वोक्त देवतानना कायोत्सर्ग करोडो तो तमे विचारो के अन्य कोइक दिन एकवार पण पूर्वधरादि. कनी आझा नंगनो दोष अनंत संसार वृझिनो जैन शास्त्रोमां कह्यो , तो नित्य प्रतिदिन अवश्यमेव अ. रिहंतादिकनी अाझा खंमन करे तो ते मिथ्यादृष्टि महा अधम अज्ञानी कहेवो जोइए, एटलुं तो तमे पण जाणता हशो.एवार्त्तानो जो तमे तादृश विचार पूर्वक ख्याल राखशो तो पदी प्रमुख महापर्व तथा पूर्वोक्त कारण विना नित्य प्रतिदिन पूर्वोक्त देवतानना कायोत्सर्ग करवा ते बहु अयोग्य , एम अाप आपणा प्रात्माथी समजी जशो, अमारे पण समजाववानी जरूर पडशे नही. ॥ तथा दशपूर्वधर श्रीवजस्वामीजीए देत्र देवतानो कायोत्सर्ग कस्यो एवो लेख श्री आवश्यकचूर्णिमां बे, ते पाठ पर लखि आव्या बीए, तेमां कोई मुग्धजीव एम कहे के श्री वजस्वामीजीतो अतिशय युक्त हता ते माटे तेननेतो एकज वार कायोत्सर्ग करवाथी देवदेवी प्रत्यद थइने अाझा देश गइ हती, अने हमणां तो पा. दिक प्रमुख महापर्वादिकमां नित्य करे तो पण क्षेत्रदेवी प्रत्यक्ष थती नथी ते माटे नित्य प्रतिदिन कायो. त्सर्ग करवो युक्त ने तेनो नत्तर अखिए बीए के श्री वजस्वामीजी तो अतिशययुक्त हता तेथी क्षेत्रदेवी प्रगट थई
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy