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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंका-झारः ६०५ स्सग होय ना अधिका होय नही, माटे ए नियत कानस्सग्ग जांणवा. शेष सर्व अनियत जांणवा तेन होय न होय, अने नग अधिका पण होय, माटे गमनादि विषय अनियत जाणवा. ए बहु सूक्ष्मबझिए विचार तथा अाठ श्वासोश्वासन चैत्यवंदनाना कायो त्सर्गनुं कालमान का, कारण के आगममां आज नश्वास पठवण पडिक्कमणादिकमां कह्याने. हवे को कहे के ए आगममां तो चैत्यनो नथी कह्यो तेने कहे जे तुं कहे डे के एचैत्यना नश्वास इहां नथी ग्रहण करया एवं तुंम कहे प्रादि शब्दथी चैत्यना पण प्राक्षिप्त तेथी स्थापित गाथा सूत्रना नपलक्षणथी जाणवू. माटे बीजी जगाए पण बागममां एवा प्रकारनाशब्दथी नहीं कहेला अर्थनीसिधि थाय जे. ते बीजा रहेला नपगरण प्रमुख परिग्रहण जाणिये बीए; केमके प्रसिपणाथी अने नित्य नपयोगी ने तेथी नेद करी कह्या नहीं आदिशब्दथी एमज वली कहे ने जेमके “गोसेमुहणंतगाई" इत्यादि था तेकाणे मात्र मुहपत्तिज कही तेमां यादिशब्दथी बीजां उपगरणनो परिग्रह पण जाणवो, ए नप करण अति प्रसिह धने प्रतिदिवस उपयोगमा आवे बे माटे तेमने जुदां जुदां कही बताव्यां नथी, एज प्र'माणे अहियां उबासमान पण जाणवू पण ध्येयनो