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________________ एएस . परिच्छेदः १४ बागममां कारण कह्यांडे ते कारण अंगीकार करीने एटले रात्रिने विषे लंचे स्वरे करीने शब्दखांसी हुंकार कारादिक पण आगममां निषेधवाथी ए प्रतिक्रमण मंद शब्देज कर; नही तो वली ते ते पूर्वोक्त कार्य करवे करीने गरोलि प्रमुख जीव जागृत थयां थकांमाखियोना नपवादिक प्रारंजमा प्रवर्ते,अथवा प्रजातना कृत्य करवावाला लोक निज निज प्रारंजना कार्यमां प्रवर्ने तथा वली एकथी बीजो, बीजाथी त्रीजो, एवीरीते परंपराए करीने निरर्थक अनेक दोषप्रवर्तिपणुं थाय ॥ ए पाठमां प्रतिक्रमणना आयंतमां विस्तारे देववंदन निषेध्या ॥ तेथी श्रीमपाध्याय श्री यशोविजयजीए पण गर्नहेतुस्वाध्यायमां रात्रिप्रतिक्रमणने अंते "श्चा मोअणुसहीं" कहीं “तिगथुश्थवचिश्वंदणसुहमारे" ॥ च० ॥ ए वचनथी सामान्य प्रकारे देववंदना कही पण विस्तारे देववंदना कही नथी. अने संध्याना प्रतिक्रमणनी अादिमां बारे अधिकार सहित विस्तारे देववंदना कही ते पूर्वोक्त महानाष्यादिक अनेक शास्त्रोमां श्रावकने त्रिकाल पूजा अवसरे विस्तारे देववंदना कही ने, तेथी संध्यानी पूजा अवसरे श्रावकने देव वांदतां बार अधिकार नाववा प्रतिपादन करया संनवे , पण प्रतिक्रमणमां बार अधिकार सहित देववंदना. करवी
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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