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. परिवेदः १४ वलियग्यारमेरे चारधाग्दशदोयवंदोरे वंदोरे श्री अष्टा पदजिनकह्यारे ॥४॥ बारमेसम्यग्दृष्टिसुरनीसमरणारे एबारअधिकार नावोरे जावोरे देववांदतांजविजनारे॥५॥ इस उपरके पातमें देवसिपडिक्कमणा करतां प्रथम बारा अधिकार सहित चैत्यवंदना करनी कही हे तिसमे चोथा कायोत्सर्गवेयावच्चगराणंका करणा तिसकी थुइ कहनी कही है.
॥उत्तर प्रदः ॥ हे सौम्य ए पाठनो तमने यथार्थ तात्पर्यार्थ मालम नथी तेथी तेम प्रतिक्रमणनी आदिमां च्यारथुइच्यार थुइ उन्मत्त बके तेमबको बो,पण उपरना पाठनो तात्पर्यार्थ ए के विक्रम संवत् १५०५ नीशालमां थयेला श्रीजयचंसूरिजीए प्रतिक्रमणगर्नहेतु बनाव्यो, ते उपरथी प्राये श्रमिउपाध्याय श्री यशोविजयजीए प्रतिक्रमणगर्नहेतुस्वाध्याय प्राये श्रावकने उद्देशीने बना. वी ; ए स्वाध्यायमां जेवी रीते श्री जयचंसूरिजीए प्रतिक्रमणगर्नहेतुमां देववंदन करवा कह्या बे, तेवी रीते उपाध्यायजीए पण देववंदन करी प्रतिक्रमण कर, एथनिप्रायथी प्रतिक्रमणहेतुना प्रसंग प्राप्तिथी विस्तारे देववंदन कह्या बे; पण जे ग्रंथ नपरथी उपाध्यायजीए प्रतिक्रमणगर्नहेतुस्वाध्याय बनावी ने तेज ग्रंथमां प्रतिक्रमणना प्राद्यतमा विस्तारे देववंदन निषेध्या ने.