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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंका-द्वारः
५ए३ चार्यकृत षडावश्यकविधि नामा ग्रंथमां पण प्रतिक्रमणना यद्यंतमां जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही डे.
* ॥ ते पाठः ॥ पंचविहायारविसुद्धि हेतुमिहसाहुसाव गोवावि ॥ पडिक्कमांसहगुरुणा गुरुविरहे कुणा इकोवि ॥ १ ॥ वंदितुचेश्याई दाउंचउराइएखमासमले नृनिहि यसिरोसयला इयारमिचोकडंदेश इत्यादि ॥ २॥ ए षडाक श्यक ग्रंथमां पाठमां देवसिक प्रतिक्रमणना ग्रादिमां जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही तेमज राइ प्रतिक्रमणना अंतमां पण जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कहीजे.
॥ ते पाठः इलामो सुसडिंति नवविसी पढइ तिन्निथुइ ॥ मीनसणंसक्क वयाइतोचेश्एवंदे ॥ ए॥ इति रात्रिप्रतिक्रमणे पडावश्यकानि ॥ ए पाठमां मृड शब्दे त्रण व ईमान थुइ कही ने पढी शक्रस्तवज बे च्यादिमां जेने एवी चैत्यवंदना करवी एटले जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना करवी कही. यद्यपि उपर लखेला सर्व शाखोमां प्रतिक्रमणना आद्यंतमां जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे, तोप चतुर्थस्तुतिनिर्णय पृष्ट १०७ मामां आत्मारामजी खानंद विजयजी लखे बे के ॥ * हम ऊपर जितने शास्त्रोंकी साहीसें देवसीपडिक्कमका विधि लिख आहै तिन सर्व ग्रंथोंमे राज्यडिक्कमके अंतमें चार थुइसे चैत्यवंदना करनी कही है ॥ ए सर्व लवकुं मिथ्या
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