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________________ ५०० परिच्छेदः १४ चैत्यवंदना जाणवी. केमके जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना बे प्रकारनी जैन ग्रंथोमां कही बे, एक तो नमस्कार शक्रस्तव जावंति प्रमुखस्तोत्र प्रणिधान सहित बीजी जावंति प्रमुख स्तोत्रप्रणिधान रहित नमस्कार शक्रस्तव पर्यंत २ ए बे जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदनामां जोजन समयनी १ जोजन पढीनी २ सुवाना समयनी ३ सूता उठया पढीनी ४ ए च्यार चैत्यवंदना तो जावंति प्रमुख स्तोत्रप्रविधानसहित जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना होय ॥ यटुक्तं श्री. प्रद्युम्न सूरिकृत सामाचार्याम् ॥ गाथा ॥ तनुयइरियाचेइ = वंदि सक्कचय जावंतिपयं पणिहाणंजाव एवं जोयण संवरसय पडिबोहति ॥ ४६ ॥ ॥ जावार्थः ॥ यार पढी इरियावही करी चैत्यवंदन एटले नमस्कार कहो शक्रस्तव जावंांति प्रमुख यावत् प्रणिधान कहे एम जोजनसंवर सयन पडिबोह एटले सूता उठचा पढी पूर्वोक्तविधि प्रमाणे चैत्यवंदना करवी ॥ एटले स्तोत्रप्रणिधान सहित पूर्वे प्रथम कहेली जघन्योत्कृष्टनामा चैत्यवंदना करवी; अने प्रतिक्रमणना याद्यं तमां जावंति प्रमुख स्तोत्र प्रणिधानरहित शक्रस्तव पर्यत चैत्यवंदना करवी. अने पूर्वे कहेली बीजी जावंति प्रमुख स्तोत्र प्रणिधानरहित शक्रस्तव पर्यंत चैत्यवंदना प्रतिक्रमणना श्राद्यंतमां करवी; ए विधिप्रपाना: पाठनो
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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