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चतुर्थस्तुतिनिर्णयको हारः
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गाथाए करीने प्रतिक्रमणनी विधि लखेली बे तेमां देवसिकप्रतिक्रमणनीयादिमां जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे पण व्यार थुइ करवी कही नथी. एवी रीते श्राछवि; धिमां पण पाठ लख्यो बे ॥ तथा विक्रम संवत् १३६३ नी सालमां थयेला श्री जिनदत्तसूरिसंतानीय तिलक श्री जिन सिंहसूरि शिष्य श्री जिनप्रसूरिजी कृत विधिप्रपामां प्रतिक्रमणना श्रादिमां जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे.
॥ ते पाठः ॥ पुछोलिंगिया पडिक्कमण सामायारी पुणएसा सावनु गुरुहिसमं इक्कोवा जावंति चेाईतिगा हा डग थोत्पलिहावद्यं चेइयाईवंदिनु चनराई खमा समोहिं प्रायरियाइवंदिय जूनिहियसिरो सवस्सविदेव सियइच्चाई दंगेण सलाइयार मिनुक्कडंदानं ॥
॥ नावार्थः ॥ पूर्वे जे सामान्य प्रकारे प्रतिक्रमणनी समाचारी कहीं हती ते ए बे के श्रावक पोताना गुरुनी साथै तथा एकलो जावंति चेश्याई १ जावंति केविसाहु २ एबे गाथा ने स्तोत्रप्रणिधान वने शक्रस्तव पर्यंत चैत्यवंदना करीने व्यार क्षमाश्रमण करीने श्राचायादिकोने वांदीने भूमि उपर मस्तक लगाडीने " सङ्घस्स वि देवसिय " इत्यादि दंमकथी समस्त यतिचारोना मि
कृत दे ॥ए पाठमां जावंति प्रमुख स्तोत्रप्रणिधान वने चैत्यवंदना कही ते शक्रस्तव पर्यंत जघन्योत्कृष्ट