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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकाहारः ५७ अनिप्राय दे. पण आत्मारामजी आनंदविजयजी चतुर्थस्तुतिनिर्णय पृष्ट ७ मां विधिप्रपाना पानी नापाने अंते लखे के ॥ * इस विधिमें पडिक्कमणेकी आदिमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही हे ॥ ए लखवं नि केवल नत्सूत्र ने केमके विधिप्रपाना पाठमां तो च्यार थुना अरज नथी तो प्रतिक्रमणनी आदिमां च्यार थुइ करवानुं लखवू आत्मारामजीन आकाशफूल जेवू असिथयुं ॥ तथा श्री मानविजयजी नपाध्यायजीकृत धर्मसंग्रह ग्रंथमां पण प्रतिक्रमणविधिना पाठमां जघ-- न्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे.
॥ ते पाठः ॥ पूर्वाचार्यप्रणीताःगाथाः ॥ पंचविं हायारविसुधि हेनमिहसाहुसावगोवावि पडिक्कमणंसहगु रुणा गुरुविरकुणझकोवि ॥१॥ वंदित्तुचेश्याई दानंच नराइएखमासमणे नूनिहिबसिरोसयला श्यारेमिहाड कडंदे॥२॥ ए पाठमां देवसिप्रतिक्रमणनी आदिमा जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे, पण ज्यार थुनी कही नथी॥ तथा वृहत्खरतर गबनी समाचारीमां पण जय-- न्योत्कृष्ट चैत्यवंदना कही ...
॥ते पाठः ॥ पुत्रोनिगिया पडिक्कमणसमायारीपुण एसा सावगुरुहिसमं कोवाजावंतिचेश्यातिगाहा ॥ उगथुत्तिपणिहाणवयं चेश्याइवंदित्तुचनराश खमासमणे