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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
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तना शास्त्रमां कही नथी. तोपण खात्मारामजि श्रानंदविजयजि पोतानी नुन्मत्तताथी पृष्ट ३३ में प्रवचनसारोद्धारादिकमां' पक्किमे चेइहरे" इत्यादि गाथाए प्रतिकमणना याद्यंतमें सामान्य जघन्य प्रकारे चैत्यवंदना कह्यात पण च्यारथुइ ए चैत्यवंदना स्थापन करेबे पण से साक्षियोए करी प्रतिक्रमणमां व्यारथोयो सिद्ध थती नथी. ते नव्यजीवोने ज्ञापन करवाने तथा आत्मारामा थानंद विजयजिने प्रतिक्रमण संबंधी चतुर्थस्तुति शंकांनोनिधिना यावर्त्तथी नुद्धरवारूप नृपकारने खर्थे पंचांगी पूर्वक पूर्वाचार्यांना रचेला शास्त्रोने अनुसारे शंकोद्वार करीएं बीए.
प्रश्नः - आत्मारामजी यानंदविजयजीतो *पमिक्कमकी याद्यंत मे च्यार थुइकी चैत्यवंदना करनी कही हे* एहवं लखेढे तो, तमो पक्किमणामां च्यार थोयूं सिद्ध थती 'नथी एवं केम लखोटो ?
- नत्तरः- अमारा श्राचार्य राजेंद्रसूरीश्वरजी तथा यमो प्रतिक्रमणना याद्यंत में जघन्य प्रकारे चैत्यवंदना करीएं बीएं. ते तां श्रात्मारामजि खानंदविजयजि पृष्ठ २ जामां * राजेंद्रसूरीजी रु धनविजयजी प्रतिक्रम
कि यादिकी चैत्यवंदनमें तीन थुइ कहनेका पंथ चलाया है तथा तीन थुइकी थापना करते हे * एह लखेबे