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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः एए सम्यक्त्वसंयुतानां दर्शनसहितानां ब्रह्मशांत्यादीनामिति शेषः न पुन नँव मूढा अझानिन इति गाथार्थः ॥
॥नाषा ॥ तथा शब्द वादांतर कहेवाने अर्थे बे. ब्रह्म शांत्यादिकनांमकार पूर्वनी पेठे प्रादि शब्दथी अंबिकादि ग्रहण करवां; केटलाएक एमनी पूजादिकनो निषेध करे ,आदिशब्द ग्रहण करवाथी शेष तेमने - चित ग्रहण करवा, तेमनी पूजा निषेध करवी योग्य नथी, केमके सिहांतादिक वृत्तिना कर्ता श्री हरिनासूरिजी महाराजने ब्रह्म शांत्यादिकनी पूजा उचित कृत सम्मत ने तेथीश्री पंचाशकजीमां तेमनां पूजादि विधान कह्यांडे. इति गाथार्थः ॥ ए०१ ॥ तेज कहे , ए ब्रह्म शांत्यादिक देव ते सम्यग् दृष्ठि ने, महा शहिवंत बे, साधर्मी डे, ते वास्ते एमनी पूजादि उचित कृत्य श्रावकोने करवां ए गाथा प्रसिझार्थ ॥ केवल श्रावक एमनी पूजादि करे, एम न समजवू, किंतु यति साधुपण एमना कायोत्सर्ग करे , तेज कहे ॥ विघ्नविघातन ते उपव विनाश करवाने अर्थे यति साधु पण क्षेत्र देवतादिकना कायोत्सर्ग करे , आदि शब्दथी जुवन देवतादिकनुं ग्रहण करते वास्ते केवल श्रावकादिकज एमनां उचित कृत्य करे जे एम न समजवं अपितु साधु पण कायोत्सर्ग करे . ए अपि शब्दनो अर्थ , केमके