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________________ ५०० परिच्छेदः १३ पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करवा, ए कथन श्रुतकेवली श्रीनबाहुस्वामीए कांडे, ए गाथार्थ जे. ॥१००१॥ तेज कहे बे, चातुर्मासीमां,सांवत्सरीमा क्षेत्र देवतानो कायोत्सर्ग करवो, कोइक आचार्य चातुर्मासीमां पण नवनदेवतानो कायोत्सर्ग करे . ए गाथार्थ डे ॥ १००२ ॥ इहां कोई प्रश्न करेले के, जो चातुर्मास्यादिकमां देव देवतादिकना कायोत्सर्ग श्री जबाह स्वामीजीए कह्याने तो वली वर्तमान कालमां नित्य कायोत्सर्ग केम करोडो? ए प्रभनो उत्तर कहे ॥आधुनीक कालमां नित्य प्रतिदिवस जे क्षेत्र देवतादिकनो कायोत्सर्ग करेडे, तेनुं कारण ए बे के वर्तमानकालमां ते देवतानना सानिध्यना अनावथी अर्थात् पूर्वकालमां विघ्न याव्यां थकां यदा कदा एकवार कायोत्सर्ग करवाथी ते देवता नपश्वनाशनादि कार्य करता हता, अने अधुना कालमां काल दोषथी विघ्न आव्यां थकां यदा कदा कायोत्सर्ग करवाथी ते देव सानिध्य करता नथी, ते वास्ते नपश्व आव्यो जाणी ते दिवसथी मांडीने उपव विनाश थाय त्यां सूधी नित्य प्रतिदिन कायोत्सर्ग द्वारा जागृत करया थका ते देव सानिध्य करेले. ते वास्ते नित्य कायोत्सर्ग करे ते नित्य कायोत्सर्गना करवाथी विशिष्ट अतिशयवंत वैयावृत्त्यकरादि देव जे ने तेजागृत थायले उपव श्राव्यां
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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