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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २५० व्याख्यान पूज्य पूर्वाचार्य करे . अने अपराचार्य उत्कृष्ठवंदनाना व्याख्यानमां पंचशक्रस्तव अने पांच अनिगम त्रण प्रदक्षिणा पूजादि संयुक्त उत्कृष्टचैत्यवंदना नं व्याख्यान करे. ए त्रण व्याख्यान तो पूर्वधर पूर्वाचार्यनी सादीए टीकाकार सिकरे . अने अन्य कोइक तो, दमकपांच अने थुइ च्यार रूढीए करीने मध्यम चैत्यवंदनान व्याख्यान करेजे. ते तथा शब्देकरी मध्यमचैत्यवंदनानो पूर्व प्रकार त्रण थुझ्नो टीकाकार, सूचनकरी अने चोथीथुइ निश्चयथी नवीन कहीने, उत्तरप्रकारमा ग्रहण न करी अने व्यवहारनाष्य ने कल्प नाष्यनुं प्रमाण देने, त्रण थुश्थी नत्कृष्ट चैत्यवंदना सिह करी.
॥पूर्वपदः ॥ अन्येत्वाहुः ॥ एटले अन्य कोइकना व्याख्यानमां तो, सिक्षांतनाषाए करीने स्तुतियुगल अर्थात् च्यारस्तुतिरूढकरीने मध्यम चैत्यवंदनानु स्वरूप कडंडे तो, तमो संकेत भाषाए करीने युगलशब्दे थुइ च्यार केम कहोबो?
उत्तर-हेसौम्य जैनशास्त्रोमां चरितानुवादे, तथा विधिवादे, पूर्वाचार्योए युगलशब्दनो अर्थ युग्म तथा द्वित्वसंख्यावाचि लख्यो. तथा चोक्तं श्रीहरिनद्रसूरिनिः आवश्यकवृत्तौ पारिणामिकी बुद्ध्याधिकारे सुंदरीनंदक