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परिच्छेदः ७ मध्यमचैत्यवंदना जाणवी २ तथा संपूर्ण एटले परिपूर्ण वंदना तो प्रसिह दमक पांच अने स्तुतित्रणे करीने वली प्रणिधान पाते करीने थाय ने. चोथी थु निश्चे नवीन. केम नवीन. ते कडे अतिशय उत्कर्षते उत्कृष्टा कहीए. ए व्याख्यान को आचार्य त्रण स्तुति त्रण श्लोकनी श्लोक त्रण प्रमाणे ज्यां सुधी चैत्यवंदना करीए त्यां सुधी जिनचैत्यमां साधुने रहेवानी आज्ञा बे. अने कारण होय तो उपरांत पण रहे. इत्यादि व्याख्यान आ कल्पनाष्यनी गाथा “ पणिहाणमुत्तसुत्तिए” एटले प्रणिधान जयवीयराय ए पाठ नत्कृष्ट चैत्यवंदनाने अंतेमुक्तासुक्तिमुद्राए कहेवो. एवचन आ. श्रिने करे . अपरथाचार्य एम कहेले के-पंचशक्रस्तव पाठ सहित संपूणे विधिकरीने पंचविध अनिगम त्रण प्रदक्षिणा पूजादिलक्षण विधान करीने, उत्कृष्ट चैत्यवंदना थायले. खलु शब्द वाक्यालंकारमा जे. अथवा अवधारणमां बे, तेनो प्रयोग आगल देखामीशु. एवी रीते चैत्यवंदना त्रणप्रकारे थाय .
ए पाठमां कल्पनाष्यगाथाना अनुसारथी दमकना अवसानमा त्रण थुइएकरी मध्यम चैत्यवंदनानुं व्याख्यान पूज्यपूर्वाचार्य करेले. तथा दमक पांच अने थुइ त्रण अने प्रणिधानपाठ सहित उत्कृष्ट चैत्यवंदनानुं