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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २४५ मां प्रसिद एयाचार्ये हजारो ग्रंथनी रचना करी . तेमां कोइ पण ग्रंथमां कोइ शंकित वात देखवामां यावती नथी सर्वशंकान्नु समाधानकरीने. पूर्वधरश्रनुयायी रचना करी. ए प्राचार्यना रचेला ग्रंथ वांचवाथी ज शंका करवावाला वादी प्रतिवादीयोना मद दूर थ‍ जाय. ए वार्ता कोइ पण समजवान जैनीथी नामंजूर थती नथी तो शक्रस्तवथी अधिक चैत्यवंदना नहि मानवावाला पूर्वपदीने साधु श्रावक बेचने दर्शनशुछिनुं कर्तव्यपणु बतावी. शक्रस्तवथी अधिकचैत्यवंदना व्यवहारजायनी गाथाए सिकरेली त्रणथुनी संपूर्ण चैत्यवंदना, कोणसमदृष्टि नामंजूरकरे. अर्थात् समदृष्टितो नामंजूर नकरे, मिथ्यादृष्टि करे, तेनी ना नही. तथा न्याय सरस्वतीबिरुदधारक श्रीमदुपाध्याय श्रीयशोविजयजीशोधित श्रीविजयानंद सूरिशिष्य पंमितश्रीशांतिविजयगणिचरणसेविमहोपाध्याय श्रीमानविजयगणि विरचित स्वोपज्ञधर्मसंग्रहवृत्तिमां बहुकाल यायतनचैत्यस्थितिदोषाधिकारमां वईमान त्रणथुइथी मध्यम तथा उत्कृष्ट चैत्यवंदना कहीले. पाठ - बहुकालं हि चैत्यायतनेवस्थितिर्दोषाययत उक्तं साधूनुद्दिश्य व्यवहारभाष्ये जवि न याहाकम्मं जत्तिकयं तह विवद्धिखं तेहिं नत्ती खजु होइ कया
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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