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________________ २४४ परिच्छेदः ७ त्यवंदना शास्त्रमांकरवी कही नथी एम कह्यु ते प्रयुक्त बे. केमके " तिन्नि वा कइ" एटले त्रण थुइ चैत्यमां कवी कही ए व्यवहारजाप्यनुं वचनसांनलवाथी; यागममां शक्रस्तवथी अधिकविधिबे. ने जो तमो कहेशो एतो साधुनी अपेक्षाए कह्योबे, ए पण न कहो. साधुने श्रावक दर्शनशुछिनु कर्त्तव्य पपुढे. तेथी वंदनने दर्शनशुछिनुं कारण बे तथा संवेगादि कारणपएं बे तथा शठ एटले गोतार्थे समाचरितपणाथी जीतल एनु इहां अंगीकारपण बे. तेथी चैत्यवंदननाष्यकारादिके ए वंदनने कारणप कह्युंडे तेथी ते जीवानिगमादि के कहेलाथी अधिक वंदननुं प्रयुक्तपणु नथी. एटले अधिककर पण योग्य वली एम पण न बोलवं. जे जाष्यकारादिकनां वचन प्रमाण नथी. केमके तेनां वचन प्रमाणये सर्वप्रकारे श्रागमनो बोध न थाय ए प्रसं गधी बोधिपथाय ने चैत्यवंदननुं वली श्रावश्यक श्राज्ञामां अनुज्ञापणुं बे तेथी वली श्रावश्यकना अंतःपातिपणाथी चैत्यवंदनसूत्रनुं ज्ञापनडे. माटे प्रमाण करवु, बहु प्रसंग कहेवेकरीने सर. ए गाथार्थः ॥ ५० ॥ ए पंचाशकवृत्तिकार श्रीश्रनयदेवाचार्यनुं पांमित्यप ाजसुधि सर्वजैनमति साधु श्रावक स्वगच पर
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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