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परिच्छेदः ७
त्तिकारे कल्पविशेषचूर्णिनो पाठ वृत्तिमां लख्योढे तेमा तिन्नि थुइयो एवो पाठ लख्योढे पण तिन्नि वाथुइयो एवो पाठ वाशब्द ग्रहणकरीने लख्यो नथी तथा कोइ जुनी प्रतोमां पण वाशब्द देखातो नथी तेथी प्रजितांति स्तवन कहेतुं श्रथवा थुइ कहेवी एवं अन्यथा व्याख्यान यात्मारामजी लखे ते सत्य बे ने कदाच वाशब्दनो पक्षांतर ग्रहणकरी शतपदीकारनुं अन्यथा व्याख्यान सिद्धांतथी मलतु स्वीकार करेलुं संनवे तोपल कल्पविशेषचूर्णि कल्पवृहद्भाष्य ने श्रावश्यकवृत्तिमां त्रण थुथी चैत्यवंदना करवी कही नथी एवं प्रात्मारामजीनुं लखवं कस्तुरीने बदले कोयला चर्बणकरवा जेवं संनवेले केमके अन्यथा व्याख्यानमां श्रजितशांति स्तवन कहो अथवा त्रण हीयमान थुइकहो एवं वाशदनो पक्षांतर अर्थ ग्रहणकरवाथी सिध्थाय बे पण
थुइ नज कहेवी ने चोथी थुइ कहेवी एवं सि६ धतुं नथी तेवास्ते जो कोइ कुयुक्तिकरीने ए पूर्वोक्तशास्त्रोना पाठ देखाडी नोलाजीवाने त्रधुनी चैत्यवंदना बोhrat एकांते चोथीथुइ स्थापन करे तो तेने निःसंदेह उत्सूत्रप्ररूपक शिवाय शुं कहेतुं जोइए तथा जेम पूर्वधरोना ग्रंथोमां त्रण थुनी चैत्यवंदना कही तेम पूर्वधरवर्त्तमानकालवर्त्ती तथा पूर्वधरनिकटकालवर्त्ती तथा