SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः ५१७ अजितशांतिना स्थानमा अन्यतः हीयमान त्रण थुकहेवी एवं अन्यथा व्याख्यान शतपदीकारनुं स्वीकारकरेलुं संनव थतुं नथी केमके कल्पबृहत्नाष्यमां तो अजित शांतिस्तवादिक क्रमथी परिहीयमान त्रण थुइ नियमे करीने कहेवी कही पण वा शब्दग्रहणकस्यो नथी तेथी वृहत्कल्पचूर्णीमां तथा आवश्यकवृत्तिमां वा शब्द ले ते अवधारण अर्थे उ एटले मृतकसाधुना परतवावाला साधु चैत्यघरमा जाय त्यां चैत्यवंदना करीने शांतिने निमित्त अजितशांति स्तवन कहे ने निश्चेत्रण थुइहीयमान कहे तेवारपडी आचार्यसमीपे प्रावीने अविधि पारिठावणियानो कायोत्सर्ग करे एम वाशब्दनो अवधारण अर्थ ग्रहणकरचाथी बृहत्कल्पनाष्यनु कथन मिलान थाय अन्यथा न थाय ॥ माटे कल्पसामान्य चूर्णिमा जे स्थानके त्रण हीयमान थुइ कही ते स्था. नके अजिसशांति स्तवन कहेवं ने पडी हीयमान त्रण थुइ कहेवी अन्यथा ते स्थानके स्वरे करीने हीयमान त्रण सूत्र थुइ कहेवी ने पडी अजितशांतिस्तवन कहेवू ए अनिप्रायथी शतपदीकार कल्पविशेषचूर्णि प्रमुखनु अन्यथा व्याख्यान सूचन करथु संनवेडे. पण वाशब्द ग्रहण करीने आत्मारामजीए अन्यथाव्याख्यान कस्युं से सि-तथी मलतुं संलवतु नथी केमके वृहत्कल्पवृ
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy