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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २१३ इत्यादि तथा नवकारकही कानसग पारे एम चारित्र तथा दर्शन अने श्रुतधर्मना अतिचार विशोधिना करनारा एटले चारित्रदर्शनशानना अतिचारनी शुझिना करनारा त्रण कानसग्ग करवा ते करीने हवे दर्शनश्रुत धर्मनुं प्राप्तथयं फल तेहने पाम्या तेन्नो बहमानपरमजक्तिएं करी मंगलने अर्थे वली थुइ कहे “सिझाएं बुझाणं गाथा" इत्यादिक अावश्यकचूर्णिनोपाठ तेनोनावार्थ कह्यो तथा कासग्ग पारी "लोगस्स उद्योयगरे"थु कहे एषमावश्यकत्तिमां लोगस्स ने थुइ कही पाक्षिक प्रतिक्रमणना काठसग्गमा सामायक करीने तथा प्रकारे रह्या दिवसना अतिचार चिंतवीने कानसग्ग नमस्कारें करी पारीनें कहे चोवीसस्तव, नामां थुइ एटले लोगस्स कहे पढी बेसीने मुहपत्ती पमिलेहीने इत्यादिक पाक्षिक चूर्णिमां पण लोगस्सने थुश्पणे करीनें कह्यो तेमाटे एज शास्वतीथुनुं त्रिक कहे, एम सिह थयुं. हवे इहां कोई कहेशे के जे तमो एम कहोडो तो कल्पना चोथा उद्देशानी सामान्यचूर्णिमा ते साधु चैत्यघरे अथवा उपाश्रये रह्या होय तेवारे जो चैत्यघरे तो परि हायमान थुए चैत्यवादिने आचार्यपासे इरियावही पमिकमीने अविधिपारिगवणीनोकाउसगकरेत्यारपती
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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