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परिच्छेदः ७ अर्थः-कोई प्रश्न करे के चैत्यवंदनाकरतांथकां तुमो संसारदावादिकनी थुश्यों केम नथी कहेता तेहने उत्तर कहे. हा प्रथमश्रागममा साधुवोने चैत्यवंदना विधि, एने तेहज कहेले चैत्यवांदवामां तथा समोसरणमां विधि कहे निस्सकम एगाथामां त्रैणज थुइकही तोते थुश्लोगस्स तथा “पुकरवरदी"अने “सिझाबुदाणं" एहवी त्रस्तुतिनुं त्रिक शास्वतुं तेज कहेवाय अनें कृत्रिम थुश्यो कहियें तो थुइ सात अथवा न थाय अने सिझांतमां तो त्रिकज विधि करवापणे कह्यो २ अने को कहेशे जे चनवीसबादिकोंने स्तुतिपणु असिम एतो स्तव ने एयूँ कहे ते पण अयुक्त जे जे माटे का. उसग्गनियुक्तिचूर्णिमा ए त्रिकने पण थुइपणु कझुंज ने ते कहेजेः अपरिमाणकाने करीने कानसग्गपारवो नमोअरिहंताणं कहीने पडे थुइ कहेवी जेणे ज्ञानदर्शन चारित्रनो उपदेशरूप थातीर्थ थाउत्सर्पणीमा देखामधुं तेनी मोटी नक्ति बहुमानथी संस्तवन करवु एकारणे काठसग्गने धनंतर चळवीसबो इत्यादि तथा नवकारें करी कानसग्ग पारी पनी ज्ञानाचारविशुझिने अर्थे श्रुतज्ञाने करीने मोक्षसाधनादिक साधिये एम जाणीने श्रुतनगवंतनी परमनक्तिए करीने तेनो प्ररूपक नमस्कारपूर्वक थु कीर्तन करे ते जिम "पुरकरवरदीव"