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________________ प्रस्तावना. वृत्ति करे, धने खरतरगडनी प्रवृति विशेष देखे त्यां खरतरगडीय थइ खरतरगचनी प्रवृत्ति करे, माटे तेमनी तो अपरंपार थकल माया , तेथी तमारा कह्या प्रमाणे होय तो अमो ना कही शकता नथी, पण शिवजीरामजी तो सात्विक ध्यानी पुरुष संनलाय , तेनुए परि. ग्रह त्यागन करी को पासे नपसंपद ग्रहण करघु संननाती नथी, तेनुं कांइ कारण हशे, पण लिंग बदलाव्यो नथी, तेथी विचारवंत पुरुष समकाय ने.तेमज श्री तपा गहना यति श्री मयासागरजी पण परिग्रह त्यागन करी को पासे उपसंपद ग्रहण करी नथी, तेनुं कारण एम संनव थाय ,के कोइ यति लोकोनी पाटपरंपरा पेढीमां शिथिलाचारादि प्रवृत्ति घणा कालथी प्रवृत्त थइने, ने कोनी पाटपरंपरा पेढीमां थोडा कालथी शिथिलाचारादि प्रवृत्ति प्रवर्त्तन थने, तेथी श्री रवीसागरजीना गुरु श्री नेमसागरजी त्यागी वैरागी हता, तेनुए श्री म. यासागरजीनी पेढीमां थोडा कालनी शिथिलाचार प्रवृत्ति देखी श्री मयासागरजीने परिग्रह त्यागन करावी पोते गुरु ध्यारया पण झानबल थोडुंहतुं, तेथी लोकोनो परिसह असहन थवाथी लिंग बदलाव्यो संनवेने, परंत आत्मारामजी आनंदविजयजी तो विद्वानपणानो अनि मान धारण करी ढंढकमतमांथी नीकलीने कुलिंगपएं
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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