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________________ २६ प्रस्तावना. गुरुनी पासे चारित्रोपसंपत् अर्थात् फरी दिदा लिधी नही तेथी तेमने पण जैनमतना साधु मानवा न जोइए. ॥पूर्वपदी श्रावक प्रश्नः ॥ वर्तमानकालमां श्रीत पागडमां तमारा गुरु श्री विजयराजेंड्सरिजी तथा श्री नेमसागरजीना शिष्य श्री रवीसागरजी अने श्री बुटेरायजी अर्थात् श्री बुझिविजयजीना शिष्य श्री बात्मारामजी तथा श्री खरतरगन्जमां श्री शिवजीरामजी अने मोहनलालजी प्रमुख निष्परिग्रही जेटला साधु विचरे बे, तेनमां तमारा गुरु राजेंइसृरिजी अने रवीसा गरजीना गुरू नेमसागरजी तथा शिवजीरामजी अने मोहनलालजी विना सर्वे उपसंपद अर्थात् संयमी गुरुनी पासे फरी दिक्षा ग्रहण करीने विचरे ने तथा ते तो मानवा योग्य. अस्य प्रश्नस्योत्तरः ॥ हे आर्य! मोहनलालजी तो आत्मारामजीना लखवा प्रमाणेप्रथम श्री खरतरगहना परियह धारी महाव्रत रहित यति हता, अने पालथी निग्रंथपणुं अंगीकार करी पंचमहाव्रत रूप सयंम अंगी कार करयु, पण ते महापुरुष तो पोतानी पुजा मानता वधि करवाने पीला कपडा करी लोकोक्तिए “गंगा गया गंगादास अने जमुना गया जमुनादास" अर्थात् तपग. बुनी प्रवृत्ति विशेष देखे त्यां तपगढीय थइ तेमनी प्र
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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