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प्रस्तावना.
धारण करधुं, पण कोइ संयमी गुरु देखी तेमनी पासे उपसंपद अर्थात् नवी दिक्षा लीधी नही, अने हे प्रार्य ! तमे श्री बुटेरायजीना शिष्य थया ते माटे श्री बुटेरायजी पासे उपसंपद ग्रहण करी कहोलो, तेतो तमे बुकस वावीने बीजोजम करी सुन्यनी मुठी नरवानी इछा करोबो, केमके श्री बुटेरायजी अर्थात् श्री बुद्धिविजयजी तो ढुंढक मतमांथी नीकलीने मुहपत्तीनी चरचा बनावी, ते बपावीने श्रावकोए देशावरोमां प्रसि -5 करी, तेमां लखेबे के * मेरी सरधा तो श्री जसोविज जीके साथ घी मिलेहे जिम उपाध्यायजी नाममात्र तपे का कहलाताथा तिम मेरेकोबी नाम मात्र तपे गका कहिलाया जोइए, मेने उपाध्यायजीके पुराग करके लोक व्यवहार मात्र समाचारी अंगीकार करी. राजनगर मध्ये सुन्नागविजे तथा मणिविजय पासे ग धारीने हम १ तथा मुलचंद २ तथा वृद्धिचंद सेठाकी धर्मशाल में चले खाए, एता उनके साथ मेरा संबंधथी मेने कर्मजोरे पांचमा कालमें जन्म लीया, विराग पिल याव्या, गुरु संजोग न मिल्या ते पापका चदा * इत्यादि बुटेरायजीना वचन जोतां तो श्री बुटेरायजीए श्री य - शोविजयजी उपाध्यायजीने परोक्षपणे जावथी गुरु धारण करी लोक व्यवहार मात्र श्री तपागचनी समा
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