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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २०७ विघ्न विघातने अर्थे जेम हमणां आत्मारामजी था. नंदविजयजिनी परंपरामांसाधु काल कस्या पड़ी पहेलां अवला त्रण थुइना देव वांदी पड़ी सुलटा च्यारथुइना देव वांदे, तेम पूर्वधर पूर्वाचार्योना लेख नथी, तेथी चोथी थुनी आचरणा देववंदनमां पाबलथी थइ संनवे. बे, तथा आत्मारामजी आनंदविजयजी चतुर्थस्तुतिनि. र्णय पृष्ट ११४ मां अंचनगढना मतनुं शरणुं लेले ते पण अयुक्त बे, एवं लखीने पोतेज अंचलगबना मतनु शरण लेइ अंचलमतनी शतपदीनामे ग्रंथनी सादीए पृष्ट ३श्मामां *कल्पविशेषचूर्णि कल्पवृहद्भाष्य अरु आवश्यकवृत्तिमे जो हे तिसमे तो तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कहीही नहीं हे ॥ एवं लखेले, ते निःसंदेह शरणागतवडलने बदले कृतघ्नपणुं सूचना करे • दे, जेम कोई प्राणी कोइनुशरणुं लेइपोतानुं कार्य सिद्ध करी जे प्राणिना शरणाथी पोतानुं कार्य सिझ थयुं तेज प्राणिना अवर्णवाद बोले तो ते प्राणि केवो नत्तम कहेवाय तेवी उत्तमता आत्मारामजि धारणकरी चतुर्थ स्तुतिनिर्णय पृष्ट २० मील १५ मीथी टष्ट ३० मानी नन ५ मी सुधी पाठ लखे ॥ तेपाठ शतपदीग्रंथनो , पण कल्पनाष्य कल्प चूर्णि प्रमुखनो नथी; केमके “कल्पविशेषचूर्णि कल्पब
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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