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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २०१ र्यादा उपरांत न रहे. ते मर्यादा एडे के चैत्यवंदनामां शक्रस्तवादि अनंतर पहेली एक श्लोकनी,बीजी बे श्लोकनी, त्रीजी श्रुतस्तव एटले ज्ञानस्तवने अनंतर त्रण श्लोकनीथुइ कहे त्यां सुधीजिनगृहमा रहेवानी बाझाबे तथा नाष्यगाथामां वा शब्द पदांतर सूचक . तेथी चैत्यवंदनाना अंतमां एटले त्रीजी थुइ त्रण श्लोकनी कह्या पली शकस्तवादिकने अनंतर जो त्रण थुइ त्रण श्लोक परिमाण प्रणिधानने अर्थे प्रतिक्रमणने अनंतर मंगलार्थ स्तुति त्रणपानी पेठे कहे, त्यांसुधी जिनमंदिरमा रहेवानी आझा , एटले संपूर्ण चैत्यवंदना कस्या पनी विनाकारणे साधु जिनदे, रासरमां न रहे. ___ हवे पदपातरहित जिनमतरसिकोने विचारकरवो जोइए के पूर्वोक्त पूर्वधर पूर्वाचार्यांना वचनप्रमाणे जे कोइजैनमति नामधरावि चैत्यवंदनामा त्रणथुप्रमाण न करे तेने मिथ्यादृष्टि होवामे कोण नव्य शंका करे अर्थात् नज करे, तथा वृहत्कल्प आवश्यकनाष्यादि शास्त्रोमां मृतकसाधुने परग्या पडी पण त्रण थुनी चैत्यवंदना कही बे, ते शास्त्रोना पाठ ऐजे त्यां प्रथम साधु काल करे. त्यारे तेज पूर्वोक्त वर्धमान त्रण थुश्यों चैत्यमा हीयमान कहे एवं आवश्यकनियुक्तिमा चनद पूर्वधर श्रीनद्रबाहुस्वामीए कांजे.