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________________ २०० परिच्छेदः ७ प्रणिधान पर्यंत देववंदन करे त्यां सूधी रहेवू कडं ते माटे चैत्यवंदनामांत्रण थुले ए व्यवहारजाष्यनी गाथानो अर्थ. वली व्यवहारनाष्यनी टीकामां पण त्रण थुइ कही. तेनो पाठः॥ एषा तनुः नापितापिरनिगंधप्रस्वेद परिश्राविणी तथा द्विविधो वायुर्यथोधिो वायुवहो निर्गम नन्चासनिश्वासनिर्गमश्च तेन कारणेन चैत्ये चेत्यायतने साधवो न तिष्ठंति अथवा श्रुतस्तवानंतरंतित्रः स्तुतयः त्रिश्लोकिकाः श्लोकत्रयप्रमाणा यावत्कर्षते तावतत्र चैत्यायतने स्थानमनुज्ञातं कारणेन कारणवशात्परेणाप्यवस्थानमनुज्ञातमिति ॥ अर्थः-मुमिने चैत्यमां क्या सूधी रहे ते कहेले. साधुनने चैत्ये जावं पण ए शरीरने श्वा होय तेटलुं स्नान करावो तोय पण उगंध परसेवादिकतो एमांथी निकलतांज रहेडे वली उंचानीचाथी वायु एमांधी सदा वहेडे ए कारणे एटले अाशातनाना नयथी साधु चैत्यमां न रहे अथवा रहेतो "पुस्करवरदीव" कहीने त्रीजी थु त्रण श्लोकनी कहे त्यां सुधी रहेवानी आझा ने अने जो को शांति स्नात्र प्रमुख कारण होय तो अधिक पण रहे ए पाठनो तात्पर्यार्थ ए बे के चैत्यगृहमा साधु म
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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