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________________ १६ परिच्छेदः ७ हा विधीयते न त्वल्पा ति रुढिः सत्यासत्या वेति प्र० उल्लष्टचैत्यवंदनविधावुत्तरोत्तरं स्तुतयः प्रायो वर्षे वृक्षा एवं विधेया इति परंपरा वर्त्ततेऽनेन रूढिः सत्यै वावसीयते परंपरामूलं तु नमोस्तु वईमानायेत्यस्याधिकारे ताअ थुन एगसिलोगादिवति आन पयत्रकरादिहिं वा सरेण वा वदंतेण तिन्नि नाणिकपमि त्याद्यावश्यकचूर्यदरदर्शनमिति संनाव्यत इति ॥ अस्यार्थः नत्कृष्टचैत्यवंदनाविधिमां नुत्तरोत्तर एटले एकथी बीजी, बीजीथी त्रीजी, थुश्यो वर्णेकरीने वधती कहीएबीए पण अल्प एटले नबी नही ए रूढी सत्य कें असत्य एवी रीते श्रीसत्यसोनाग्यगणिए प्रश्न कस्यो तेनो उत्तर श्रीतपागबनायक श्रीसेनसूरीजीए एवो दीधो के चैत्यवंदना विधिने विषे उत्तरोत्तर थुश्यो बहुलताए वर्णे करीने वृक्षहीज कहेवी, एवी परंपरा वडे तेणे करीने वर्धमान थुनी रूढिः सत्यज जणाय ने परंपरामूलतो नमोस्तु वईमानाय ए अधिकारने अवसरे थुझ्यो एक श्लोकादिक वईमानपद अदादिक अथवा स्वरे वर्धमान त्रण कहीने इत्यादिक आवश्यक चूर्णिना अदर देखवाथी संनवेडे ॥ इहां प्रतिक्रमण समाप्ति त्रण थुइ दृष्टांते चैत्यवंदनामां वर्धमान थुश
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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