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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १५५ नहीं तो, शास्त्रनुं कथन तो तेने क्यांथी नासन थाय अर्थात् नज थाय पण जे मत कदाग्रह रहित अपदपाती मध्यस्थ दृष्टिवंत पुरुषोने तो पूर्वधरअनुयायिशास्त्रमा सामान्ये वचन होय तो पण विशेषे नासन थाय तो पूर्वधरोना विशेष वचन तो केम नासन न थाय अर्थात् थायज पण जेम सूर्य सर्वत्र प्रकाश करी सर्वनां नेत्र विकाश करे पण घुयमनां नेत्र विकाश न थाय तो, सूर्यनो शो दोष तेम पूर्वधरोना खुलासा करेला पाठ पण कोनी नजरमां न आवे तो शास्त्रनो शो दोप तेना कर्मनोज दोष परंतु पूर्वधरोना कथन करेला पाठमांथी केवि रीतनो पाठ केविरीते ग्रहण करवो अने केविरीते समजवो ते तो मध्यस्थ दृष्टिकपर आधार रहे. डे तेथी मध्यस्थ दृष्टिए विचार करीए तो पूर्वोक्तपाठमां प्रतिक्रमण समाप्तिमांत्रण वईमान थुइ कही तेमज चैत्यवंदनामां पण जाणवी केमके अनवचिन्ह परंपराए पूर्वधरोना वचनने आधारे चैत्यवंदनामा पूर्वपरंपराए त्रण वईमान थुइ करता आव्या तेथीज अाधुनिक पू. र्वकाल वर्ति श्रीसेनसूरिजी पण चैत्यवंदनामां. वर्धमान त्रण थुइ लखेडे. तेपातः ॥ अथपं० सत्यसौनाग्यग० कृतप्रश्ने चैतडतरं यथा उत्कृष्ठचैत्यवंदनविधावुत्तरोत्तरं स्तुतयो वर्ग
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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