SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ परिच्छेदः ७ स्वामी चतुर्दश पूर्वधर बीजा श्रीसंघदासगणि पूर्वधर त्रीजा श्रीदेवगिणि पूर्वधर चोथा श्री हरिनद्रसूरि ॥ १४० ० । १४४० । १४४४ ॥ ग्रंथोना कर्त्ता पांचमा श्री जयदेवसूरि नवांगवृत्तिकारक इत्यादि श्राचार्योंनां ग्रंथोमां त्रण थुए करी चैत्यवंदना कहीबे वली त्रण त्रण थुइयोंनां जोडां श्रीहरिनद्रसूरि प्रद्युम्नसूरिप्रमुखनां करेला तेमां प्रथम अधिकृत अरिहंत थुइ बीजी सर्व जिनथुइ त्रीजी ज्ञाननी एवीरीतनां त्रण थुइयोंनां जोडां घणांक देखवामां यावेळे ए पूर्वोक्तपुरुष गुरुपरंपराथी सर्वे त्रण धुइ मानता हता जो त्रण थुइ न मानता एहवुं कहीए तो ते पुरुष स्यावास्ते त्रण थुइनी रचना करे ने ग्रंथोमां प्रतिपादन करे तथा वादिवेताल श्रीशांतिसूरिजीए उत्तराध्ययन सूत्रनीवृत्तिमां त्रण थुइ कंही तथा श्री जगच्चंद्रसूरी महाप्रजाविक क्रियाशिथिल मुनिसमुदायने जांणी, गुरुश्राज्ञाएं चैत्रगतीय वैराग्यरसैक समुद्र श्रीदेवनद्रोपाध्यायनी सहायता अंगीकार करीने किया दारकर्त्ता श्रीश्राघाटपुरमे बत्रीस दिगंबराचार्योंने रांणानी सनामे विवादमे जीत्या तपाबिरुद धारक तेवंनां शिष्य परमवैराग्यवंत श्रीदेवेंद्रसूरिकृत श्रावक दिनकृत्यसूत्रवृत्तिमां निश्राकृत निश्राकृत चै - त्यमांत्रण धुइए चैत्यवंदना कहीबे तथा वृहद्रचैकमंमन
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy