SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १८३ सो लाखरूपे गावी ए प्रश्न श्रीविभर्षि गणिनो तेनो उत्तर श्रीतपागचनायकें श्रीहीरसूरिजीएं दीधो के इहां सो लाखनी एककोडि जलायडे पण वीसरूपें न जांगवी हवे सुजनोंने विचार करवो जोइए के एवीरीते पूर्व पुरुषोंना खुलासाने उल्लंघी स्वकपोल कल्पनाए पूर्वाचार्य सम्मति विना जैनशास्त्रमां विरोधनाव जणाववा वालो जैनशास्त्रानो विरोधीकेम न थाय अर्थात् थायज नें जे जैनशास्त्रानो विरोधी होय ते चतुर्विध संघनो विरोधी होयज केमके चतुर्विधसंघमे प्रवचन रह्युंडे माटे ॥ " तथा पूर्वधरपूर्वाचार्यसमाचारीनो विरोधी एवीरीतेथायढेके" ॥ श्रीश्रावस्यकवृहद्वृत्ति १ श्रावक धर्मप्रकरण २ श्रावस्यक लघुवृत्ति ३ यावस्यक चूर्णि ४ पंचाशकवृत्ति ५ नवपदप्र करणविवरण श्रीयशोदेवउपाध्यायकृत ६ नवपदप्रकरण वृत्ति संव १०७० मां थयेला श्रीदेवगुप्त सूरिकृत ७ श्रावक प्रतिक्रमणचूर्णि सं १९८३मां थयेला चंद्रगीय श्रीसिंहाचार्यकृत पंचाशकचूर्णि यशोदेवसूरिकृत ए योगशास्त्रवृत्ति श्रीमाचार्यकृत १० कथाकोश श्रीवर्द्धमानसूरिकृत ११ श्रादिनकृतसूत्र १२ श्राइ दिनकृतवृत्ति श्रीतपागच्छाधिराज श्रीदेवेंद्रसूरिकृत १३ इत्यादिक - नेक शास्त्र में श्रावकोनें सामायिक लेतां प्रथम करेमि ते पढे इरियावही कहीबे तथा एक तो श्रीभद्रबाहु
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy