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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः 1 Ե Ա श्रीचतुर्विंशतिदंमकस्तवना कर्त्ता श्रीगजसागरजी नृपाध्यायजीना गुरु श्रीधवल चंद्र उपाध्यायजीकृत प्रतिक्रमण गर्नहेतुमां जिनगृहमां त्रण थुइएं देववांदी प्रतिक्रमण श्रवसरे जघन्य चैत्यवंदना करी पक्किमणुं कर कह्युंडे पण च्यार थुइ कही नथी तथा श्रीरलशेखरसूरिजीए तथा श्रीमद्यशोविजयजीउपाध्यायजीए तथा श्रीमानविजयजी उपाध्यायजीए तथा श्रीजिनवल्लनसूरिना शिष्य जिनदत्तसूरिए तथा सुविहित देवसूरिना शिष्य श्रीनेमिचंद्रसूरिए तथा श्रीसिदसेनसूरिए तथा श्रीकुलमंमनसूरिए तथा श्रीसोमसुंदरसूरिए तथा श्रीधर्म घोषसूरिए क्रमी श्राद्धविधिमा प्रतिमाशतकमां धर्म संग्रहमां संदेहदोलावलि मूल वृत्तिमां प्रवचनसारो-र मूलवृत्तिमां विचारामृतसंग्रहमां लंघुनाप्य प्रवचूरिमां निश्राच्प्रनिश्राकृत सर्वचैत्योंमां त्रण थुइ कहेवी कही बें इत्यादिक बीजा पण अनेक प्राचार्योंए त्रण थुइ कहेवी कही. ए सर्व श्राचार्यांनी गुरुपरंपरा अने शिष्यपरंपराधी हजारो प्राचार्योएं त्रणथुइ मान्य करीबे तेवास्ते यमोने मोटुं प्राश्वर्य उत्पन्न थायले के पुण्योदये ढुंढकपणानुं कुलिंग सेवन मुंकी वली आत्मारामजीने नस्मग्रहनी वक्रताने जोगे पापनो उदय किहांथी जाग्यो के पालुं
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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