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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १७ए लिंग मोइनुं कारण नथी केमके जरतादिकोंने लिंग विना केवलज्ञान उपज्यु एम सांजलीए बीए एम नि. श्चयनयना विचारमांतो लिंगनी कां पण जरूर नथी पण एकांत मांनवाथी व्यवहारनो लोप थाय तो शासनोछेद पाप लागे ते माटे व्यवहार नयना मतमां तो लिंगने पण मोद सद्भत कारणपणुंज ने एटले निश्चेमा तो ज्ञानदर्शनचारित्रज मोदना कारण पण व्यवहारे लिंग पण मोक्षद् कारण ले तेमज निश्चयनयने मते पण एज अनिप्राय जे जे लिंग प्रत्ये तो आदरज करवो पण ते आदर केवल व्यवहारथीज नथी इवता केमके तत्वथी व्यवहार निश्चयनो नेद विद्वानने विप्रत्ययनो हेतु कोई पण थतोज नथी वस्तुताए ए नयअपेक्षाए एकज ए जावार्थ स्पष्ट ने एटले महावीरस्वामिए सिंग कडं ते अने पार्श्वनाथस्वामीए लिंग का ते पोत पो. ताना तीर्थमां मोदनुं कारण ले माटे वीरना साधु जो नानाप्रकारना रंगेला तथा मूल्यथी बहु मोघां वस्त्र धारण करे तो नामलिंग थाय अने कुलिंग थाय एम जणाव्युंडे तथा लिंगमां स्युं ने तेहकारण पण जणाव्यु॥ एवीरीतें श्रीश्राचारांगसूत्री आचारांगवृत्तिश् श्रीसूयगमांगसूत्र श्रीसूयगमांगवृत्ति श्रीनिशीथसत्र५ श्रीनिशीथचूर्णि श्रीधनियुक्तिमूल ७ श्रीधनियुक्तिटीका श्रीश्रावश्य
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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