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________________ १७० परिच्छेदः । साधु डे अने जो लिंग न देखामिये तो मनमां आवे तेहवो वेष करीने पूजाने अर्थे नांम प्रमुख पण कहे जे अमे पणं साधु बीए ते माटे लोकमां ए साधु डे एहवी प्रतीति न थाय केमके अनेक प्रकारना विकल्प एटले नाना प्रकारना नपगरणनी कल्पना अधिकारथी जाणवामां आवे के वर्षाकल्पादिक नपगरण साक्षात् साधुनेज होय एटले स्वेत मानोपेत कंबलादिक उपगरणतो यतिनेज होय अने रंगेला प्रमुख उपगरण नामादिकोने होय एहवी प्रतीति केम न होय एटले होयज ए प्रयोजन लिंग देखामवानु बे तथा संयमनिर्वाहने अर्थे वस्त्रादिक राखे. न राखेतो दृष्टि वर्षतां संयमने बाधाज थाय तेहने अंर्थे लिंग धारे तथा को वखते चित्त चले तो लिंग धारेनुं होय तो जाणे के हुं साधु थयोढुं माटे अकार्यकिम करुं एटला कारण माटे लिंगर्नु राखवानुं प्रयोजन डे एटले लिंगधारवानु प्रयोजन देखामधु हवे कोइ निश्चय नयने अवलंबन करीने वेषने निषेधे तेहने कहे "थथेत्युपन्यासे” इत्यादिकनो नावार्थ एम डे के पार्श्वनाथ स्वामी अने वईमानस्वामी ए बेहुने ए प्रतिज्ञा ते कहे बे के मोदनुं सत्य साधन निघेनये तो ज्ञानदर्शनचारित्रज ने लिंगने मुक्तिनूत साधनपणुं नथी मानता केमके ज्ञानादिक ने तेहीज मोदनु सत्य कारण डे पण
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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