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चतुर्थस्तुति निर्णयशंकोद्धारः
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जो रंगेलां तथा बहुमोघां वस्त्रपहिरे तो तेहने कुलिंगी कहीये इहां कोइ कहेशे जो रंगेलां वस्त्रपहिरवाथी कुलिंग कहो तो पार्श्वनाथस्वामीना साधु पण कुलिंगी थया तेह ने कहीये एम न बोलवु तेहुंने तो पांचवर्णा पहिरवानो जयाचारबे जेहुना याचारमें तथा प्राज्ञामे चाले ते कुलिंग न कहिएं माटे ते कुलिंग न होय हवे जे लिंगमां स्युंबे तेहनो उत्तर वृत्तिकार कहे .
जे पूर्वे पार्श्वनाथस्वामीना साधुवोंने सचेलप ने वर्द्धमानस्वामीना साधुवोंने अचेल पण मान्यु तीर्थंकरोए ते वांबित बे एटले ए मार्ग इमज जोइयें एहमां शंका न करवी ने जो कोइ इम कहे एहमां शुं बे तेने कहे
जो अधिकार इम न मानिये ने वर्द्धमानस्वामीना चेलानंने रंगवानी मर्याद कहीये तो वर्द्धमांनस्वामीना साधु वक्रजम बे ते सदा रंगवानुज करता रहे ए दोष प्रवर्त्ति मिटावी प्रतिकठिण थाय ते माटे एहुंने वस्त्र रंगवुं सर्वथा वर्ज्य. अने रंगेलुं वस्त्र धारकुं पण पूर्वे निषेध करधुं बे ने पार्श्वनाथजीना शिष्य एहवा नथी माटे तेहुँने रंगेला वस्त्रनी श्राज्ञा थापी जुप्राज्ञपणाथी ए परमार्थ डे वली कहेबे के लिंगमां शुं बे तेहनो परमार्थ देखामे के लिंगथी लोकोंने प्रतीत उपजे जे ए